जीएन साईंबाबा को बरी करने के फैसले के खिलाफ याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में विशेष सुनवाई

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जीएन साईंबाबा को बरी करने के फैसले के खिलाफ याचिका पर आज सुप्रीम कोर्ट में विशेष सुनवाई

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बॉम्बे हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है.

नई दिल्ली :

दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा (GN Saibaba) को बॉम्बे हाईकोर्ट (Bombay High Court) ने माओवादियों से कनेक्शन रखने के कथित आरोपों से बरी कर दिया है. जीएन साईंबाबा को बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में याचिका दाखिल की है जिस पर शनिवार को 11 बजे सुनवाई होगी. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच सुनवाई करेगी. सुप्रीम कोर्ट में छुट्टी के दिन यह विशेष सुनवाई होगी.

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दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर जीएन साईबाबा की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास के खिलाफ दायर  याचिका स्वीकार करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच ने आज उन्हें बरी करने का फैसला सुनाया है. जस्टिस रोहित देव और जस्टिस अनिल पानसरे की खंडपीठ ने उन्हें तत्काल रिहा करने का भी आदेश दिया है.

साल 2017 में  महाराष्ट्र की गढ़चिरौली की अदालत ने उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके खिलाफ साईबाबा ने बॉम्बे हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. शारीरिक रूप से 90 फीसदी दिव्यांग साईबाबा को 2014 में नक्सलियों को समर्थन देने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. साईबाबा शुरू से ही आदिवासियों-जनजातियों के लिए आवाज उठाते रहे हैं. जीएन साईंबाबा, जो शारीरिक अक्षमता के कारण व्हीलचेयर पर ही चलते हैं, वर्तमान में नागपुर केंद्रीय जेल में बंद हैं.

पीठ ने मामले में पांच अन्य दोषियों की अपील को भी स्वीकार कर लिया और उन्हें भी बरी कर दिया. पांच में से एक की अपील पर सुनवाई लंबित रहने के दौरान मृत्यु हो चुकी है. खंडपीठ ने दोषियों को तत्काल जेल से रिहा करने का निर्देश दिया जब तक कि वे किसी अन्य मामले में आरोपी न हों.

मार्च 2017 में, महाराष्ट्र के गढ़चिरौली जिले की एक सत्र अदालत ने साईंबाबा, एक पत्रकार और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के एक छात्र सहित अन्य को कथित माओवादी लिंक और देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने की गतिविधियों में शामिल होने के लिए दोषी ठहराया था. अदालत ने जीएन साईबाबा और अन्य को कड़े गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) और भारतीय दंड संहिता (IPC) के विभिन्न प्रावधानों के तहत दोषी ठहराया था.

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