महिला पत्रकार के डांस वीडियो पर भाषा का ‘नंगा नाच’ क्यों?

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नई दिल्‍ली:

यह कोई नचनिया है क्या? संविधान मुजरा करने की आजादी देता है? नाच लेती हैं मर्दों के इशारे पर! सोशल मीडिया पर पिछले कुछ दिनों से एक वायरल वीडियो के नीचे लिखे ये कुछ कॉमेंट्स हैं. वीडियो टीवी पत्रकार मीनाक्षी जोशी का है. इसमें वह अपने घर पर एक फिल्मी गाने पर आम भारतीय महिला की तरह डांस करती दिख रही हैं. इस पुराने वीडियो को लेकर उनकी ट्रोलिंग की जा रही है. भद्दे कॉमेंट्स किए जा रहे हैं. कॉमेंट्स बता रहे हैं कि इस सोशल खुन्नस की वजह कुछ और है. इस ट्रोलिंग का मीनाक्षी जोशी ने भी डटकर जवाब दिया है. कुछ ऐसी निजी बातें शेयर की हैं, जिन्हें पढ़कर कॉमेंट्स करने वालों को अपने लिखे पर अफसोस होना चाहिए. सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में भी लोग आ रहे हैं. #WesupportMinakshiJoshi हैशटैग के साथ इस ट्रोलिंग का जवाब दिया जा रहा है.   

‘मैं गर्भवती थी, मूड स्विंग होता था…’

मीनाक्षी जोशी ने भद्दे कॉमेंट्स करने वालों को जवाब दिया है. उन्होंने बताया है कि कैसे जब वह गर्भवती थीं, तब उन्होंने यह वीडियो बनाया था. एक्स पर शेयर एक पोस्ट में वह लिखती हैं, ‘मेरे गर्भधारण का दूसरा महीना चल रहा था. अक्सर मूड स्विंग होते थे तो डांस म्यूज़िक से ख़ुद को हमेशा जॉली मूड में रखने की कोशिश करती थी… कई भद्दे कमेंट्स हैं लेकिन कुछ स्क्रीनशॉट्स सिर्फ़ इसलिए की आप जब ख़ुद को आईने में देखें तो अपनी गर्भवती पत्नी, मां, बहन और महिला मित्रों को भी याद कर लें.’ 

एक दूसरी पोस्ट वह लिखती हैं, ‘ नए ज़माने की लड़की हूं, हड़प्पा की खुदाई से नहीं निकली.. करूंगी डांस ! नचनिया और भद्दे कमेंट करने वालों लगभग साल भर पहले मैंने  @instagram पर वीडियो लगाया था. चलो इसे भी वायरल करने के काम पर लग जाओ सोशल मीडिया के गंवारों.’ 

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इसलिए बनाया जा रहा है निशाना!

मीनाक्षी जोशी को सोशल मीडिया पर सपोर्ट भी मिल रहा है. मीनाक्षी जोशी का एक विडियो शेयर बताया जा रहा है कि आखिर उन्हें निशाने पर लेने की वजह क्या है? इसमें कहा जा रहा है कि अपने ब्राह्मण वाले वीडियो और एक टीवी कार्यक्रम में मनुस्मृति फाड़ने को लेकर कॉमेंट के चलते महिला पत्रकार को धमकियां दी जा रही हैं. उनके खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया जा रहा है.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या वैचारिक विरोध का स्तर इतना गिरना चाहिए.सोशल मीडिया अपनी बात रखने के लिए ओपन प्लेटफॉर्म है. किसी बात पर मतभेद होना लाजिमी है. उसे जाहिर भी किया जाना चाहिए. लेकिन शब्दों की शालीनता के इस दायरे को लांघने की क्या इजाजत मिलना चाहिए. यह बात सिर्फ एक नहीं, सभी पक्षों पर लागू होती है. मुद्दों पर बहस की जगह किसी का चरित्र हनन करने का यह सिलसिला आखिर कहां ले जाता है?


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