समलैंगिक शादी को मान्यता देने का मामले में सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की मांग
समलैंगिक शादी को मान्यता देने का मामले में सुप्रीम कोर्ट से पुनर्विचार याचिकाओं पर जल्द सुनवाई मांग की. कोर्ट ने खुली अदालत में सुनवाई की मांग की. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि उन्होंने याचिकाएं देखी नहीं हैं. वो देखेंगे सुनवाई तय पर विचार करेंगे. वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि सभी जज इस बात से सहमत हैं कि भेदभाव है. अगर भेदभाव है तो उसका उपचार भी होना चाहिए. बड़ी संख्या में लोगों का जीवन निर्भर करता है. हमने खुली अदालत में सुनवाई का आग्रह किया. इसे 28 नवंबर को सूचीबद्ध किया जाना है. हम खुली अदालत में सुनवाई की मांग कर रहे हैं. गौरतलब है कि नियमों के मुताबिक- पुनर्विचार याचिकाओं पर चेंबर में ही जज विचार करते हैं, हालांकि सुप्रीम कोर्ट कुछ मामलों में खुली अदालत में सुनवाई का फैसला भी करता है.
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सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिकाएं दाखिल की गई हैं. याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट से जल्द सुनवाई की मांग की गई है. समलैंगिक विवाह मामले में संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल की गई हैं. याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपने फैसले पर फिर से विचार करने की गुहार लगाई गई है. सीजेआई की अगुवाई वाली पांच जजों की पीठ के फैसले पर फिर विचार करने की गुहार लगाई. याचिकाकर्ताओं ने अर्जी दाखिल की है.
17 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता देने से किया था इनकार
17 अक्तूबर को पांच जजों के संविधान पीठ ने 3: 2 के बहुमत से समलैंगिक शादी को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था. भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के खिलाफ फैसला सुनाया था. न्यायालय ने कहा कि आज जो कानून मौजूद है, वह विवाह करने के अधिकार या समान-लिंग वाले जोड़ों के सिविल यूनियन में प्रवेश करने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है और इसे सक्षम करने के लिए कानून बनाना संसद पर निर्भर है. न्ययालय ने यह भी माना कि कानून समान-लिंग वाले जोड़ों के बच्चों को गोद लेने के अधिकारों को मान्यता नहीं देता है. बहुमत की राय जस्टिस भट, जस्टिसकोहली और जस्टिस नरसिम्हा ने दी. सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल ने अलग-अलग असहमति वाले फैसले दिए थे. सभी न्यायाधीश इस बात पर एकमत थे कि विवाह का कोई अधिकार नहीं है और समान लिंग वाले जोड़े इसे मौलिक अधिकार के रूप में दावा नहीं कर सकते. न्यायालय ने सर्वसम्मति से विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को दी गई चुनौती को भी खारिज कर दिया.
फैसले के प्रमुख बिन्दू
जस्टिस भट, जस्टिस कोहली और जस्टिस नरसिम्हा के बहुमत के फैसले ने यह भी माना कि समान लिंग वाले जोड़ों के बीच संबंधों को कानून के तहत मान्यता नहीं है और वे बच्चों को गोद लेने के अधिकार का दावा भी नहीं कर सकते हैं, हालांकि सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस कौल ने अपनी अलग-अलग अल्पमत राय में फैसला सुनाया था कि समान-लिंग वाले जोड़े अपने रिश्ते को सिविल यूनियन के रूप में मान्यता देने के हकदार हैं और परिणामी लाभों का दावा कर सकते हैं. इस संबंध में उन्होंने यह भी कहा था कि ऐसे जोड़ों को बच्चों को गोद लेने का अधिकार है. गौरतलब है कि फैसले के बाद संविधान पीठ में शामिल जस्टिस एस रवींद्र भट रिटायर हो गए थे. अब सीजेआई इस मामले में किसी अन्य जज को संविधान पीठ में शामिल करेंगे. फिर चेंबर में इन पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार होगा. संविधान पीठ तय करेगा कि क्या इन पर खुली अदालत में सुनवाई हो.