अरुणाचल प्रदेश में मेगा पावर प्रोजेक्ट के पास भूस्खलन के बाद असम में भारी विरोध प्रदर्शन

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एक अन्य प्रदर्शनकारी ग्रामीण माया नाथ ने कहा, “हम चिंतित हैं, अचानक से पानी का बहाव आ सकता है, हम नदी पर लगातार नजर रख रहे हैं, हम बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं, हमने नावें तैयार कर रखी हैं, हम दहशत में हैं.” 

हालिया कुछ सप्‍ताहों में पूर्वोत्तर में यह एक और आपदा है. सिक्किम में एक ग्‍लेशियर झील के फटने के कारण बांध टूटने से भारी बाढ़ आई थी और कई मौतें हुईं थीं. भूस्खलन ने अरुणाचल प्रदेश में बांध के निचले हिस्से में असम के लखीमपुर जिले में अधिकारियों को चिंतित कर दिया है.  

2,000 मेगावाट की सुबनसिरी जलविद्युत परियोजना का बांध अरुणाचल प्रदेश में विकसित किए जा रहे मेगा बांधों में से एक है. भूस्खलन के कारण सुबनसिरी नदी में एक डायवर्जन सुरंग अवरुद्ध हो गई, जिससे नीचे की ओर जल प्रवाह में भारी कमी आई है. 

नेशनल हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर कॉर्पोरेशन ने एक बयान में कहा, “यह सुबनसिरी लोअर हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट में उपयोग में आने वाली एकमात्र डायवर्जन सुरंग थी, क्योंकि अन्य चार डायवर्जन सुरंगों को पहले ही अवरुद्ध कर दिया गया था.”

एनएचपीसी के वरिष्ठ सलाहकार एएन मोहम्मद ने बांध स्थल पर संवाददाताओं से कहा, “हम स्वीकार करते हैं कि हमें कुछ बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है और अब हमारा ध्यान डायवर्जन सुरंगों के गेट को बंद करने पर है ताकि भूस्खलन उन पर प्रभाव न डालें.”

सरकार ने एक एडवाइजरी जारी की है, जिसमें लोगों से मछली पकड़ने, तैराकी करने, नहाने और नौकायन जैसी गतिविधियों से दूर रहने के लिए कहा गया है. साथ ही लोगों से अपने मवेशियों को नदी से दूर रखने के लिए भी कहा गया है. 

इससे पहले, भूस्खलन ने चार अन्य सुरंगों को अवरुद्ध कर दिया था. पिछले साल अप्रैल में टेल रेस चैनल निर्माण गतिविधियों के कारण बिजलीघर की सुरक्षा दीवार ढह गई थी. 

पिछले तीन सालों में परियोजना स्थल चार बड़े भूस्खलनों से प्रभावित हुआ है. 

ताजा घटना ने पूर्वी हिमालय क्षेत्र में नदियों पर मेगा बांधों को लेकर बढ़ती चिंता में और इजाफा किया है. 

पर्यावरण और जलविद्युत शोधकर्ता नीरज वाघोलिकर ने कहा, “हाल ही में पूर्वी हिमालय में जलविद्युत परियोजनाओं ने एक बार फिर यह बड़ा मुद्दा उठाया है कि जलविद्युत परियोजनाओं को विकसित करने से पूर्व पर्यावरण के जोखिमों का पता कैसे लगाया जाता है. उदाहरण के लिए, सिक्किम में ग्‍लेशियर झील के फटने की घटना, सुबनसिरी परियोजना का मामला जहां बांध इसी कारण बह गया था, वर्षों से लोगों ने न केवल नीचे की ओर बहाव के प्रभाव बल्कि पर्यावरणीय जोखिम कारकों के बारे में भी चिंता जताई है.”

सुबनसिरी, ब्रम्हपुत्र की सबसे बड़ी सहायक नदी होने के नाते बड़े पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करती है. यदि नदी का प्रवाह बहाल करने में समय लगा तो इसका असर व्यापक हो सकता है. 

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