क्‍या कोचिंग और प्रतियोगिता का दबाव बच्‍चों के लिए जानलेवा साबित हो रहा है? जानिए एक्सपर्ट की राय

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नई दिल्ली:

17-18 साल की उम्र जिंदगी जीने की उम्र होती है, जान देने की नहीं. फिर वो कौनसी हताशा होती है कि इस उम्र में कुछ नौजवान अपने सबसे सुंदर दिनों में सबसे अंधेरी गली चुन लेते हैं. यह सवाल आज कोटा में तीन बच्‍चों की खुदकुशी की खबर से फिर खड़ा हुआ है. एक बार फिर से राजस्‍थान के कोटा में कोचिंग में पढ़ाई करने वाले तीन छात्रों ने कथित तौर पर खुदकुशी कर ली है. मृतक छात्रों में 2 बिहार और एक मध्यप्रदेश के रहने वाले हैं. जिनकी उम्र 16,17 और 18 साल थी.

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कोटा में छात्रों की आत्महत्या की घटना से कोचिंग इंडस्ट्री में उदासी का आलम है. अभिभावक मानते हैं कि इंजीनियर और डॉक्टर बनने का रास्ता कोटा होकर जाता है. इसीलिए देशभर से छात्र कोटा में इन पाठ्यक्रमों में प्रवेश की तैयारी के लिए पहुंचते है. हर साल लगभग डेढ़ से दो लाख छात्र-छात्राएं कोटा का रुख करते है. छात्रों की आत्महत्या को लेकर NDTV ने सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार और विद्यामंदिर क्लासेज के CAO से NDTV ने बात की है.

सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार ने कहा, “ये बहुत दुखद घटना हुई है. इसपर जितना दुख व्यक्त किया जाए वो कम है, क्योंकि जिनके घर में यह घटना हुई है. उनके माता-पिता पर क्या बीत रही होगी. इस संकट के दौर पर बोलना बड़ा मुश्किल है. लेकिन ऐसी घटना इसलिए घटती है, क्योंकि बच्चों पर दबाव रहता है. एक समाज का दबाव, दोस्तों का दबाव और देखा-देखी का दबाव. मेडिकल की तैयारी कर रहे है, इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे हैं तो मुझे भी करना चाहिए. अब बच्चों की रुचि उतनी होती नहीं है. उस विषय में उतना झुकाव होता नहीं है. छात्र दबाव महसूस करता है. उसको बार बार लगता है कि हमारे माता पिता इतनी मुश्किल से भेजे हैं. मैं आपको दिखाऊंगा, अपने दोस्तों को क्या जवाब दूंगा.”

विद्यामंदिर क्लासेज के CAO सौरभ कुमार ने कहा, “सबसे पहले तो मैं इस घटना पर दुख व्यक्त करता हूं और उन परिवारों के साथ संवेदना है, जिनके घर में ये घटना हुई है. आमतौर पर जितने भी संस्थान वहां बिना टेस्ट के एंट्री नहीं होती है. विश्व के बडे साइकॉलोजिस्ट आत्महत्या के तीन कारण बताते हैं, जिसमें पहला कारण है मूड स्विंग या डिप्रेशन का आना. दूसरा कारण है कुछ ऐसा लगना की टॅाप हो गए हैं. लॉस हो रहा है कुछ या तीसरा आप कह सकते हैं. नशीले प्रदार्थ लेना, जो बच्चों के केस में एप्लिकेबल नहीं होता है. बच्चे जब कोटा या किसी भी शहर में अपने मां- बाप से दूर हो जाते हैं, अपने दिल की बात शेर नहीं कर पाते हैं. उनके पास कोई ऐसा साथी नहीं होता जो उनकी परेशानी को सुन सके. ये किसी भी शहर में हो सकता है तो वहां पर बच्चा प्रेशर में आता है. जीवन सर्वोपरि है. जीवन से ऊपर कुछ भी नहीं है.”  

सुपर 30 के संस्थापक आनंद कुमार ने कहा कि आगे रास्ते बहुत होते हैं. अभी विद्या मंदिर के सीईओ साहब ने सही बताया की ये हर जीवन में हमेशा यही सोचना चाहिए कि कोई परीक्षा जिंदगी की आखिरी काम नहीं है. मौके जिंदगी में एक बार दो बार नहीं कई बार बार बार मिलता है. पहली बात तो ये समझ लेने जैसी होनी चाहिए. दूसरी बात ये मेरा मानना है कि इस तरह की घटना की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए कोचिंग इंस्टिट्यूट में व्यवस्था होनी चाहिए. बच्चों का काउंसलिंग किया जाए. ताकि उन्हें आत्महत्या से बचाया जा सके.

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