नियत प्रक्रिया का पालन हुआ? : SC ने अफजल खान की कब्र के पास की गई तोड़फोड़ की मांगी रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने जिला कलेक्टर से तोड़फोड़ को लेकर दो हफ्ते में रिपोर्ट मांगी है. अदालत ने पूछा कि है अतिक्रमण की प्रकृति क्या थी? क्या नियत प्रक्रिया का पालन किया गया? तोड़फोड़ कार्रवाई की प्रकृति क्या है?
कोर्ट के सवालों का जवाब देते हुए महाराष्ट्र सरकार की ओर से एन.के कौल ने कहा कि मकबरे के आसपास वन क्षेत्र व राजस्व जमीन पर बड़े पैमाने पर किए गए अवैध निर्माण गिराए गए हैं. ये सब कानून के मुताबिक किया जा रहा है. बॉम्बे हाईकोर्ट ने ही अवैध निर्माण हटाने के आदेश दिए थे.
दरअसल, पूरे मामले में सरकार के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की मांग की गई थी. महाराष्ट्र के सतारा में आदिल शाह वंश के सेनापति अफजल खान की कब्र के आसपास सरकारी जमीन पर बने निर्माण को गिराने पर दाखिल याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के लिए तैयार हो गया था.
याचिकाकर्ता की ओर से वकील ने CJI डीवाई चंद्रचूड़ के सामने मामले को उठाते हुए कहा कि अफजल खान की कब्र के पास व्यापक स्तर पर किए गए अवैध निर्माण को गिराने का काम जिला प्रशासन और राजस्व विभाग की टीम ने सुबह छह बजे से शुरू कर दिया है. किसी गड़बड़ी से बचने के लिए क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी गई है.
इस दौरान सुरक्षा के लिए चार जिलों के 1500 से अधिक पुलिसकर्मी प्रतापगढ़ में तैनात किए गए हैं. हमें शंका है कि प्रशासन अवैध निर्माण की आड़ में अफजल खान के मकबरे और कब्र को भी तोड़ देगा.
याचिकाकर्ता के वकील ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट ने वहां तोड़फोड़ पर पहले रोक लगाई थी. इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट में अवमानना याचिका दाखिल की गई थी. फिलहाल के लिए तोड़फोड़ पर अंतरिम रोक और मामले की सुनवाई की मांग है.
कोर्ट ने याचिकाकर्ता के वकील से पूछा कि जब 1600 ई में उनकी मृत्यु हो गई तो 1959 में वह कब्र कैसे बनी ? यह वन भूमि पर अतिक्रमण है. वनभूमि पर कब्र कैसे आई? इस पर वकील ने जवाब दिया वहां श्राइन पहले से मौजूद था.
दरअसल, हज़रत मोहम्मद अफजल खान मेमोरियल सोसायटी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल कर महाराष्ट्र के सतारा में अफजल खान के मकबरे और कब्र के ढांचे को गिराने से रोकने की मांग की गई है.
जानकारी के मुताबिक प्रतापगढ़ में अफजल खान की कब्र छत्रपति शिवाजी महाराज ने उसका वध करने के बाद बनवाई थी. हालांकि, शुरुआत में यह कब्र कुछ फीट की जगह में थी. लेकिन बाद में इस कब्र का सौंदर्यीकरण किया गया और वन विभाग की एक एकड़ जमीन पर अतिक्रमण कर 19 अवैध कमरे बना दिए गए.
साल 2006 में स्थानीय लोगों ने इसकी शिकायत संबंधित विभाग से की. जब विभाग की ओर से कोई कार्रवाई नहीं हुई तो यह मामला कोर्ट पहुंचा. बॉम्बे हाईकोर्ट ने 2017 में अवैध निर्माण गिराने का आदेश दिया था. जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई. केस तभी से लंबित है.
यह भी पढ़ें –
— “पूरी तरह अस्वीकार्य” : राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करने के SC के आदेश पर कांग्रेस
— केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की फटकार, जजों की नियुक्ति न करने पर जताई नाराजगी
Featured Video Of The Day
मार्च से ले सकेंगे रैपिड रेल का आनंद, रफ्तार मेट्रो से तीन गुना