CAA पर सुप्रीम कोर्ट : अब 6 दिसंबर को सुनवाई होगी, सभी पक्षों को तीन पेज की लिखित दलील देनी होगी
नागरिकता संशोधन कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून पर रोक लगाने से साफ तौर पर इनकार कर दिया. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था और जवाब मांगा था.
नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कांग्रेस, त्रिपुरा राज परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर देव बर्मन और असम गण परिषद, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (आईयूएमएल), कांग्रेस सांसद जयराम रमेश और तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा, असदुद्दीन औवैसी, CPI और डीएमके की याचिकाओं सहित कई याचिकाएं दायर की गईं हैं. इन सभी में नागरिकता संशोधन कानून 2019 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है.
कानून को चुनौती देने वाले अन्य कई याचिकाकर्ताओं में ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (आसू), पीस पार्टी, गैर सरकारी संगठन ‘रिहाई मंच और सिटिजंस अगेंस्ट हेट, अधिवक्ता एम एल शर्मा और कानून के कई छात्र शामिल हैं. संशोधित कानून के अनुसार धार्मिक प्रताड़ना के चलते 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा और उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द ने गुरुवार की रात नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को स्वीकृति प्रदान कर दी थी, जिससे यह कानून बन गया था.
जयराम रमेश ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों पर ”खुला हमला है. वहीं, मोइत्रा ने कहा है कि कानून की असंवैधानिकता भारत के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने पर हमला है. रमेश ने कहा कि न्यायालय के विचार के लिए कई महत्वपूर्ण सवाल हैं, जिनमें यह भी शामिल है कि भारत में नागरिकता प्राप्त करने या नागरिकता से इनकार करने के लिए क्या धर्म एक कारक हो सकता है, क्योंकि नागरिकता कानून 1955 में यह असंवैधानिक संशोधन है. मोइत्रा ने अपनी याचिका में कहा है कि कानून विभाजक और भेदभाव करने वाला है. उन्होंने शीर्ष अदालत से कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाने का निर्देश दिए जाने का आग्रह किया है. आईयूएमएल ने कहा है कि कानून संवैधानिक ढांचे के खिलाफ है और यह मुसलमानों से भेदभाव करता है.
वहीं केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में प्रारंभिक जवाब दाखिल कर बताया था CAA से किसी भी नागरिक के मौजूदा अधिकारों पर प्रतिबंध नहीं है. यह कानूनी, लोकतांत्रिक या धर्मनिरपेक्ष अधिकारों को प्रभावित नहीं करेगा. केंद्र का कहना है कि CAA संसद की संप्रभु शक्ति से जुड़ा मामला है और अदालत के समक्ष इस पर सवाल नहीं उठाया जा सकता. हलफनामे में आगे कहा गया है कि संसद बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में धार्मिक अल्पसंख्यकों को चिन्हित करने के लिए सक्षम है.
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