Exclusive: गायक शैलेंद्र सिंह को आज मिलेगा लता मंगेशकर सम्मान, कहा- इंतेहा हो गई इंतजार की
सन 1972 में सिर्फ 19 साल की उम्र में प्लेबैक सिंगर के रूप में अपना करियर शुरू करने वाले शैलेंद्र सिंह बॉलीवुड के ऐसे गायक हैं जिन्होंने सैकड़ों, हजारों गीत तो नहीं गाए, लेकिन जो गाया वो यादगार बन गया. उनके सुरों से सजे गाने उनके चाहने वालों के जहन में हमेशा मधुरता का रस घोलते हैं. शैलेंद्र सिंह ने लता मंगेशकर अलंकरण मिलने पर कहा कि, ”अफसोस यह है कि 37 साल बाद मुझे यह अवार्ड दिया जा रहा है. मैं 38 साल पहले लता जी के साथ शो करने के लिए इंदौर गया था तो उसी दिन स्टेज पर तब के सीएम अर्जुन सिंह ने एनाउंस किया था कि अगले साल से हम लता मंगेशकर अवार्ड शुरू कर रहे हैं. मुझे उसके 37 साल बाद यह मिल रहा है. खैर कहते हैं न देर आय दुरुस्त आए… मिला तो सही.”
शैलेंद्र सिंह ने लता मंगेशकर के साथ भी गाने गाए. लता जी के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा, ”उनके बारे में मैं क्या बताऊं, मैं तो बहुत छोटा हूं. इतनी बड़ी शख्सियत और उनके टैलेंट के बारे में तो मैं नहीं समझता
हूं कि कुछ बोलना चाहिए, मैं बहुत छोटा हूं. लेकिन उनके टैलेंट के बारे में तो दुनिया जानती है. सिंगिंग के बारे में तो मैं कुछ बोलना ही नहीं चाहता, एवरीवन नोज.. किस कैलिवर की सिंगर थीं वो.. और कितनी इम्पारटेंट थीं हम लोगों के लिए.. लेकिन मैं बहुत लकी हूं कि मैंने अपनी पहली फिल्म ‘बॉबी’ में ही उनके साथ डुएट्स गाए. मैं अपने आप को बहुत लकी समझता हूं. वे जाते-जाते भी मुझे अवार्ड दे गईं, मध्यप्रदेश गवर्नमेंट का लता मंगेशकर अवार्ड.”
शैलेंद्र सिंह ने सिनेमा के लिए कई मधुर गीत गाए. खास बात यह रही कि उनके करीब सभी गीत हिट होते गए. यह कैसे हो सकता है कि किसी गायक के सभी गाने हिट होते चले जाएं? इस सवाल पर उन्होंने कहा कि, ”जो लोग मेरा गाना पसंद करते हैं उनकी मेहरबानी है कि मेरे गाने हिट होते रहे. लोगों के पसंद करने की एक वजह यह हो सकती है कि मेरी आवाज किसी से मिलती नहीं है.”
शैलेंद्र सिंह को फिल्म ‘बॉबी’ के लिए ग्रेट शोमैन राज कपूर ने पहला मौका दिया था. उनसे यह पूछने पर क्या वे इसके लिए पहले से तैयार थे? और यह कैसे हुआ? उन्होंने कहा, ”मैं तैयार तो नहीं था, मैं तो एक्टर बनना चाहता था. एक्टिंग सीखने के लिए इंस्टीट्यूट (पुणे) गया था. वहां जब सेकेंड ईयर में था तब बॉम्बे से कॉल आया. मैं बॉम्बे गया और राज साहब से मिला, उन्होंने मुझे पसंद किया. इस तरह मुझे ‘बॉबी’ का ब्रेक मिला. बनना तो मैं एक्टर चाहता था. बचपन से गाना तो मैंने सीखा ही था. बस यही एक छोटा सा इंसिडेंट है. इसे इत्तेफाक बोलिए, किस्मत बोलिए.. मुझे पता नहीं.”
सवाल – आप एक एक्टर होते तो ज्यादा संतुष्ट होते या एक गायक की तरह ही संतुष्ट हैं? पर उन्होंने कहा कि, ”देखिए जब मैंने गाना शुरू किया तो मुझे ज्यादा मजा गाने में आने लगा. गानों की रिकॉर्डिंग में मजा आने लगा. इसलिए फिर मैंने एक्टिंग चार-पांच फिल्मों में ही की, ज्यादा में नहीं की. मैं पूरी तवज्जो गाने पर देने लगा था. रियली आई इंज्वाय सिंगिंग एंड आई स्टिल डू इट.”
शैलेंद्र सिंह का गाया हुआ फिल्म ‘बॉबी’ का सुपर हिट गीत ‘झूठ बोले कौवा काटे…’ गीतकार विट्ठलभाई पटेल ने लिखा था और विट्ठल भाई पटेल के फिल्मी सफर की शुरुआत भी फिल्म ‘बॉबी’ से ही हुई थी. उनके बारे में पूछने पर शैलेंद्र सिंह ने कहा, ”विट्ठल भाई पटेल से ज्यादा तो नहीं मिला, रिकॉर्डिंग के दौरान ही मिलता था. लेकिन वे फोन पर मेरे टच में थे. काफी सालों तक उनसे संपर्क बना रहा. बॉम्बे आते थे तो मिलते थे. ‘बॉबी’ उनकी पहली फिल्म थी, मेरी भी पहली फिल्म थी. वे मुझे आदमी बहुत सज्जन लगे. जितना थोड़ा बहुत भी मिला उनसे.. वे बहुत ही बेहतरीन इंसान थे.”
”बॉबी” के बाद के गीतों के सफर के बारे में पूछने पर शैलेंद्र सिंह ने कहा कि, ”बॉबी के बाद गाने तो मुझे काफी मिले, ज्यादातर ऋषि कपूर के लिए. लेकिन मैंने और लोगों के लिए भी बहुत गाने गाए, जैसे मिथुन, सचिन, शशि कपूर, राजीव कपूर, रणधीर कपूर हैं… सबके लिए.. और शम्मी कपूर के लिए भी गाया मैंने. मुझे गाने भी बड़े अच्छे मिले. भले थोड़े ही गाने हों, मगर गाने सभी अच्छे मिले. इसी वजह से हिट हुए क्योंकि गानों की तर्ज अच्छी थी, बोल अच्छे थे, बनाने वाले अच्छे थे. मैंने हर कम्पोजर के साथ काम किया.. आरडी बर्मन, कल्याण जी आनंद जी, रवींद्र जैन, सलिल चौधरी, शंकर जी, उषा खन्ना.. तो ऐसा कोई बचा नहीं सिवाय मदन मोहन और एसडी बर्मन के.”
आपको किस संगीतकार के साथ काम करने में सबसे ज्यादा अच्छा लगा? इस सवाल पर शैलेंद्र सिंह ने कहा, ”गुणी तो सभी थे, अपने-अपने स्टाइल के साथ सब गुणी थे लेकिन एक कम्फर्ट लेवल ज्यादातर आरडी बर्मन के साथ था. मेरी उनसे अच्छी दोस्ती भी थी. मैंने बप्पी लहरी के साथ भी बहुत काम किया.”
मौजूदा फिल्म संगीत के बारे में आपका क्या नजरिया है? इस सवाल पर शैलेंद्र सिंह ने प्रतिप्रश्न करते हुए कहा- ”आज गाने होते हैं क्या? पहले तो यही पता नहीं है..उनको मैं गाना कहूं या सिर्फ शोर कहूं..एक तो लिरिक्स बहुत गंदे हो गए हैं, बहुत चीप हो गए हैं.. इसका कोई मतलब नहीं होता. एक लूप बना देते हैं और उसी को रिपीट करते रहते हैं. लोग नाचते हैं उस गाने पर..वे चार-पांच दिन नाचते हैं, फिर गाना भूल जाते हैं क्योंकि दूसरा गाना आ जाता है. मैलोडी और लिरिक्स होते नहीं हैं इसलिए गाना सस्टेन नहीं करता. आज के गानों की सेल्फ लाइफ नहीं है बिल्कुल भी. यह बहुत अफसोस की बात है.”
अपने सबसे पसंदीदा गीत के बारे में सवाल पर उन्होंने कहा, ”मेरा पहला गाना- ‘मैं शायर तो नहीं …’ वह गाना बहुत कमाल का है. उसे बड़ा अच्छा बनाया गया है. मेरे लिए तो वही गाना सबसे अच्छा है.”
फिल्म गायक के रूप में करियर बनाने की कोशिश कर रहे कलाकारों को लेकर उन्होंने कहा कि, ”कोई भी सिंगर यदि प्लेबैक सिंगर बनना चाहता है या स्टेज का सिंगर बनना चाहता है तो पहले तो रियाज बहुत जरूरी है, अच्छा गुरु बहुत जरूरी है. आई एम श्योर लोग सीखते ही होंगे गाना.. सबसे ज्यादा कोशिश यह करनी चाहिए कि किसी की नकल न करें. अगर आप नकल नहीं करेंगे तो आप अपनी जगह बना सकेंगे. वर्ना तो फिर वही हो जाएगा कि ये किशोर कुमार क्लोन, मोहम्मद रफी क्लोन, मुकेश क्लोन.. वही बनकर रह जाते हैं..क्लोन बहुत हैं हमारे देश में, ओरीजनल बहुत कम हैं.”
गौरतलब है कि शैलेंद्र सिंह को वर्ष 2019 का राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान दिया जा रहा है. उनके अलावा 200 से ज्यादा फिल्मों के लिए संगीत रच चुके आनंद और मिलिंद को वर्ष 2020 के लिए यह अलंकरण प्रदान किया जाएगा. मध्य प्रदेश सरकार ने पिछली बार लता मंगेशकर सम्मान समारोह सात फरवरी 2020 को आयोजित किया था. इसके बाद दो वर्षों तक कोविड-19 के प्रकोप के कारण यह समारोह आयोजित नहीं किया जा सका.
राष्ट्रीय लता मंगेशकर सम्मान संगीत क्षेत्र में कलात्मक श्रेष्ठता को प्रोत्साहित करने के लिए मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग की ओर से दिया जाने वाला सालाना अलंकरण है. इससे सम्मानित कलाकार को दो लाख रुपये की धनराशि और प्रशस्ति पट्टिका प्रदान की जाती है. लता मंगेशकर का जन्म 28 सितंबर 1929 को इंदौर में हुआ था और उन्होंने छह फरवरी 2022 को मुंबई में आखिरी सांस ली थी.
लता मंगेशकर ने NDTV से कहा था- मुझ में 75 प्रतिशत टेलेंट नेचरल, बाकी मेहनत का (Aired: September 2008)