‘ये तो हास्यास्पद है…’, जॉर्ज सोरोस को US का सबसे बड़ा सम्मान मिलने पर एलन मस्क 

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अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने खरबपति कारोबारी जॉर्ज सोरोस को अमेरिका के सबस बड़े नागरिक सम्मान ‘प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ फ्रीडम’ से सम्मानित करने का ऐलान किया है. ये अमेरिका में किसी नागरिक को मिलने वाला सबसे बड़ा सम्मान है. अमेरिका के सरकार के इस फैसले को लेकर 20 जनवरी से अमेरिका की सरकार में अहम भूमिका निभाने जा रहे खरबपति एलन मस्क की भी प्रतिक्रिया आई है. उन्होंने मौजूदा सरकार के इस फैसले को हास्यासपद बताया है.उन्होंने इसे लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट भी किया है. उन्होंने लिखा कि मेरे विचार से जॉर्ज सोरोस मूल रूप से मानवता से ही नफरत करते हैं. वो तो ऐसी चीजें कर रहे हैं जो सभ्यता के ताने-बाने को खत्म कर रहा है. 

इस सम्मान के लिए सोरोस के चुने जाने को लेकर अब तरह तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. आपको बता दें कि एलन मस्क और कई रिपब्लिकन्स समेत कई बड़ी हस्तियों ने इस सम्मान को राजनीति से प्रेरित बताया है. ये पार्टी लंबे समय से सोरोस पर अपनी संपत्ति का इस्तेमाल वैश्विक राजनीति को प्रभावित करने के लिए करने का आरोप लगाती रही है.

जॉर्ज सोरोस भारत में भी राजनीतिक टकराव के केंद्र में रहे हैं. पिछले साल दिसंबर में ही संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने कांग्रेस पर सोरोस और उनके संगठनों से जुड़े होने का आरोप लगाया. नड्डा ने पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी और सोरोस-वित्त पोषित पहल के बीच कथित संबंधों का हवाला देते हुए दावा किया कि कांग्रेस पार्टी भारत को अस्थिर करने के लिए विदेशी ताकतों के “उपकरण” के रूप में काम कर रही है.

हालांकि, कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने आरोपों का खंडन करते हुए उन्हें निराधार बताया था. इस मुद्दे पर भाजपा लगातार कांग्रेस को घेरती दिखी है. ये मुद्दा कई बार संसद में भी उठा है. 

कौन हैं जॉर्ज सोरोस

जॉर्ज सोरोस एक अमेरिकी अरबपति उद्योगपति है. उनका जन्म हंगरी में एक यहूदी परिवार में हुआ था. हिटलर के नाजी जर्मनी में जब यहूदियों को मारा जा रहा था तो वह किसी तरह से वहां से बचकर निकल गए थे.94 साल के अरबपति सोरोस पर दुनिया के कई देशों में राजनीति और समाज को प्रभावित करने का एजेंडा चलाने का आरोप भी लगता रहा है. सोरोस का प्रभाव और उससे जुड़ा विवाद अंतरराष्ट्रीय सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ है. उनके ओपन सोसाइटी फाउंडेशन को हंगरी और रूस जैसे देशों में विरोध का सामना करना पड़ा है, जहां उनकी पहल को अक्सर विदेशी हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है.



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