युद्ध के कगार पर पाकिस्‍तान और अफगानिस्‍तान! क्‍या मचने जा रही है तबाही?

0 6

Pakistan Afghanistan Conflict: दक्षिण एशिया में एक बार फिर युद्ध की गूंज सुनाई देने लगी है. दो पड़ोसी देश पाकिस्तान और अफगानिस्तान उस कगार पर खड़े हैं, जहां से सिर्फ बारूद की गंध और गोलियों की आवाज़ आती है . अफगान सीमा पर तैनात 15,000 तालिबानी लड़ाके और पाकिस्तानी सेना के बढ़ते कदम. दोनों ओर खिंच चुकी तलवारें, और हवा में तैरता एक ही सवाल क्या ये तनाव किसी बड़े संघर्ष में तब्दील हो जाएगा?

पिछले कुछ समय से पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा पर तनाव बढ़ रहा है. अफगानिस्तान में पाकिस्तानी एयरस्ट्राइक के बाद हालात और भी गंभीर हो गए हैं. अब तालिबान के 15 हजार लड़ाके पाकिस्तान की सीमा की ओर बढ़ रहे हैं. इस बीच, पाकिस्तान ने भी पेशावर और क्वेटा से अपनी सेना को सीमा पर तैनात कर दिया है.

पाकिस्‍तानी दूतावास के प्रभारी को किया तलब 

सूत्रों की मानें तो, पाकिस्तानी सेना की कुछ टुकड़ियां अफगान सीमा पर पहुंच चुकी हैं, जबकि अफगान तालिबान मीर अली सीमा के पास आ गया है. हालांकि अभी तक गोलीबारी की कोई खबर नहीं है, लेकिन दोनों तरफ से तैनाती बढ़ा दी गई है, जिससे हालात काफी नाजुक बने हुए हैं.

इस बीच, अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने काबुल में पाकिस्तानी दूतावास के प्रभारी को तलब किया है. अफगान विदेश मंत्रालय ने इस हमले की कड़ी निंदा की है और इसे दोनों देशों के संबंधों में दरार डालने का प्रयास बताया है.

पाकिस्‍तान की एयरस्‍ट्राइक से बढ़ा संकट?

यह विवाद तब शुरू हुआ जब तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) ने वजीरिस्तान में पाकिस्तानी सेना के 30 जवानों को मार गिराया. इसके जवाब में पाकिस्तान ने एयरस्ट्राइक करके यह संदेश देने की कोशिश की कि वह अपने सैनिकों की हत्या बर्दाश्त नहीं करेगा. लेकिन, यह जवाबी कार्रवाई अब एक बड़े संकट में बदल गई है.

अफगान तालिबान के पास भारी मात्रा में हथियार हैं और वे दुर्गम इलाकों में छिपने की क्षमता रखते हैं. उनके पास एके-47, मोर्टार, रॉकेट लॉन्चर जैसे आधुनिक हथियारों का भंडार है. इसके अलावा, वे उन पहाड़ों और गुफाओं से हमले करते हैं, जिनके बारे में पाकिस्तानी सेना को जानकारी तक नहीं है.

समस्‍याओं से ग्रस्‍त शहबाज शरीफ सरकार 

शहबाज शरीफ सरकार पहले से ही आर्थिक संकट, सीपैक प्रोजेक्ट में देरी और बलूचिस्तान में अलगाववाद जैसी समस्याओं से जूझ रही है. इन मुद्दों ने सरकार और सेना दोनों को कमजोर किया है. अब तालिबान के साथ टकराव ने इस संकट को और बढ़ा दिया है.

तालिबान का उभार 1990 के दशक में अफगानिस्तान से रूसी सैनिकों की वापसी के बाद हुआ था. पश्तो भाषा में तालिबान का मतलब होता है ‘छात्र’, खासकर ऐसे छात्र जो कट्टर इस्लामी धार्मिक शिक्षा से प्रेरित हों. माना जाता है कि कट्टर सुन्नी इस्लामी विद्वानों ने पाकिस्तान में इनकी नींव रखी थी, जिन्हें सऊदी अरब से आर्थिक मदद मिली थी.

सैनिकों के तैनाती के बाद दहशत में लोग 

तालिबान ने शुरू में इस्लामी इलाकों से विदेशी शासन खत्म करना, वहां शरिया कानून और इस्लामी राज्य स्थापित करना अपना मकसद बताया था. हालांकि, उनके तौर-तरीकों ने उनकी लोकप्रियता को कम कर दिया, लेकिन तब तक वे इतने शक्तिशाली हो चुके थे कि उनसे निपटना मुश्किल हो गया था.

मीर अली बॉर्डर पर बढ़ती गतिविधियों के चलते पाकिस्तान ने अपनी सेना को अलर्ट पर रखा है. सीमाई इलाकों में सैनिकों की तैनाती तेज कर दी गई है. स्थानीय लोगों में डर का माहौल है और स्थिति किसी बड़े संघर्ष का संकेत दे रही है. अब यह देखना होगा कि पाकिस्तान और तालिबान के बीच यह टकराव किस दिशा में आगे बढ़ता है. यह स्थिति दक्षिण एशिया के लिए एक बड़ी चुनौती है. हमें इस पर कड़ी नज़र रखनी होगी और उम्मीद करनी होगी कि तनाव जल्द ही शांत हो जाएगा.
 



Source link

Leave A Reply

Your email address will not be published.