Explainer: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग? क्या है पूरा विवाद

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इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) के जस्टिस शेखर यादव को लेकर विवाद बढ़ता जा रहा है. शेखर यादव के हाल के बयानों को लेकर हाल के दिनों में काफी विवाद देखने को मिला है. शेखर यादव ने विश्व हिंदू परिषद के कार्यक्रम में भाषण दिया था जिसमें उन्होंने कहा था कि यह देश हिंदुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक लोगों की इच्छा के मुताबिक चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर संज्ञान लिया और इलाहाबाद हाई कोर्ट से इस बारे में जानकारी मांगी थी. अब इस मामले को विपक्षी सदस्य संसद में उठाने की तैयारी में हैं.  

राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने मंगलवार को कहा कि विश्व हिन्दू परिषद (VHP) के एक कार्यक्रम में विवादास्पद टिप्पणी करने वाले इलाहाबाद हाईकोट के न्यायाधीश शेखर यादव ने ‘घृणास्पद भाषण’ देकर अपने पद की शपथ का उल्लंघन किया है और वह अन्य विपक्षी सांसदों के साथ मिलकर न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए नोटिस देंगे.

– राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल

क्या है पूरा विवाद? 
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर यादव पर आरोप है कि उन्होंने अपने भाषण में एक विशेष धार्मिक समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाने वाले बयान दिए थे. ऐसे बयान देने से न्यायपालिका की गरिमा को ठेस पहुंचती है और यह न्यायाधीश के पद के लिए अनुचित माना जाता है. विपक्षी दलों ने जस्टिस यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की मांग की है. उनका मानना है कि इस तरह के बयान देने वाले व्यक्ति को न्यायाधीश के पद पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. 

राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘मैंने कुछ साथी नेताओं दिग्विजय सिंह (कांग्रेस), विवेक तन्खा (कांग्रेस), मनोज झा (राष्ट्रीय जनता दल), जावेद अली (समाजवादी पार्टी) और जॉन ब्रिटास (मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी) से बात की है. हम जल्द ही मिलेंगे और न्यायाधीश के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएंगे.

सीटिंग जज को कैसे हटाया जाता है?
भारत में किसी भी सीटिंग जज को हटाने की प्रक्रिया काफी जटिल है. संविधान में इसे लेकर प्रावधान दिए गए हैं. किसी जज को हटाने के लिए संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। यह प्रस्ताव जज के खिलाफ गंभीर आरोपों, जैसे कि दुर्व्यवहार या अक्षमता,पद की गरिमा की अवहेलना पर आधारित होना चाहिए. महाभियोग प्रस्ताव लाने के लिए लोकसभा के कम से कम 100 सदस्यों या राज्यसभा के कम से कम 50 सदस्यों को हस्ताक्षरित नोटिस देने की जरूरत होती है. नोटिस मिलने के बाद एक जांच समिति गठित की जाती है जो आरोपों की जांच करती है. जांच समिति अपनी रिपोर्ट संसद को सौंपती है. रिपोर्ट के आधार पर संसद के दोनों सदनों में इस प्रस्ताव पर बहस होती है. दोनों सदनों में विशेष बहुमत से इस प्रस्ताव को पारित होना आवश्यक होता है. दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित होने के बाद राष्ट्रपति जज को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं. 

संसद में कितने वोट चाहिए होते हैं? 
किसी भी जज पर महाभियोग लाने के लिए दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा में, इस प्रस्ताव को विशेष बहुमत से पारित होना आवश्यक होता है. विशेष बहुमत का मतलब है कि प्रस्ताव को सदन की कुल सदस्यता का बहुमत और उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई बहुमत से पारित होना चाहिए. 

जजों पर महाभियोग की क्या है पूरी प्रक्रिया?

  • संसद के किसी भी सदन में लाया जा सकता है प्रस्ताव
  • लोकसभा में 100 सदस्यों के समर्थन की होती है जरूरत
  • राज्यसभा में 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की होती है जरूरत
  • संसद की तरफ से बनायी जाती है जांच समिति
  • जांच समिति संसद को सौंपती है रिपोर्ट
  • संसद की दोनों सदनों में प्रस्ताव पर होती है बहस
  • जज को भी अपना पक्ष रखने का मिलता है मौका
  • पारित करने के लिए विशेष बहुमत की होती है जरूरत
  • संसद के निर्णय पर अंतिम मुहर राष्ट्रपति लगाते हैं

अनुच्छेद 124 की क्यों हो रही है चर्चा? 
अनुच्छेद 124 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण अनुच्छेद है जो भारत के सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और उसके कार्यों से संबंधित है. यह अनुच्छेद भारत की न्यायपालिका का आधार है और यह सुनिश्चित करता है कि देश में एक स्वतंत्र और निष्पक्ष न्यायिक व्यवस्था हो. अनुच्छेद 124 न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया की व्यख्या करता है. यह अनुच्छेद न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया के बारे में भी बताता है. यह अनुच्छेद न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र बनाता है. इसमें स्पष्ट तौर पर इस बात को बताया गया है कि किसी जज ने कोई गलती की है तो उसे कैसे हटाया जा सकता है. 

कब कब महाभियोग से जज हटाए गए हैं?
भारत में कई बार जजों के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया शुरू की गई है, लेकिन यह प्रक्रिया बहुत जटिल होने के कारण कभी पूरी नहीं हो पाई है. या तो प्रस्ताव को बहुमत नहीं मिला या फिर जजों ने उससे पहले ही इस्तीफा दे दिया.न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका से स्वतंत्र रखना बहुत महत्वपूर्ण है. अगर जजों को आसानी से हटाया जा सकता है तो वे सरकार के दबाव में काम कर सकते हैं और न्यायपालिका की स्वतंत्रता खत्म हो सकती है. महाभियोग प्रस्ताव को संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत से पारित होना होता है। यह सुनिश्चित करता है कि जज को हटाने का फैसला जल्दबाजी में न लिया जाए. 

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