चुनावी हार, विपक्ष के ताने और सत्ता से बाहर होने के बाद भी लौटने का हुनर रखते हैं देवेंद्र फडणवीस

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मुंबई:

“मेरा पानी उतरा देखकर मेरे किनारे घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर वापस जरूर आऊंगा…”  ये बात देवेंद्र फडणवीस ने 2019 में कही थी. चुनावी हार, विपक्ष के ताने और सत्ता से बाहर होने के बाद भी उनका ये आत्मविश्वास अडिग था और सही कहा उन्होंने, क्योंकि वो ना सिर्फ लौटे बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति के सबसे मजबूत खिलाड़ी बनकर उभरे. फडणवीस की कहानी केवल राजनीतिक सफलता की नहीं, बल्कि कड़ी मेहनत, दूरदृष्टि, और अटूट विश्वास की है. उनकी यात्रा उस युवक से शुरू होती है, जिसने नगर निगम के एक पार्षद के रूप में राजनीति में पहला कदम रखा था और आज वह भारतीय राजनीति के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक हैं.

शुरुआत और पारिवारिक पृष्ठभूमि

22 जुलाई 1970 को नागपुर में जन्मे देवेंद्र गंगाधरराव फडणवीस, एक साधारण मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं. उनके पिता गंगाधरराव एक समाजसेवी, जनसंघ के सदस्य और महाराष्ट्र विधान परिषद के सदस्य थे. शायद यहीं से राजनीति का बीज उनके भीतर पनपा. मां सरिता फडणवीस ने उन्हें शिक्षा और मूल्यों की मजबूत नींव दी. देवेंद्र फडणवीस ने कानून में स्नातक किया, फिर जर्मनी के डाहलम स्कूल ऑफ एजुकेशन से बिजनेस मैनेजमेंट और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में डिप्लोमा हासिल किया. पढ़ाई के साथ ही वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) से जुड़ गए. यहीं से उनका राजनीतिक सफर शुरू हुआ. उनकी शादी 2006 में अमृता फडणवीस से हुई, जो खुद एक बैंकर और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनकी एक प्यारी बेटी दिविजा भी है. राजनीति के शोर के बीच, देवेंद्र फडणवीस एक जिम्मेदार पिता, बेटे और पति हैं. राजनीति के अलावा उन्हें पढ़ने, लिखने और क्रिकेट देखने का शौक है. वो अपनी व्यस्तता के बावजूद इन चीजों के लिए समय निकालते हैं.

राजनीति में कदम

फडणवीस की राजनीति यात्रा आरएसएस से शुरू हुई. महज 22 साल की उम्र में, 1992 में, नागपुर नगर निगम के सबसे युवा पार्षद बने. उनकी साफ छवि और मजबूत पकड़ ने उन्हें जल्द ही पहचान दिलाई. उनके काम का असर ऐसा था कि 1997 में वो भारत के दूसरे सबसे युवा मेयर बने. नागपुर के विकास और उनकी प्रशासनिक क्षमता ने उन्हें भारतीय जनता पार्टी में तेजी से आगे बढ़ने का मौका दिया. उनकी मेयरशिप के दौरान ही लोगों को ये एहसास हो गया था कि यह युवा नेता दूर तक जाने वाला है. 1999 में फडणवीस पहली बार विधायक बने. ये वही दौर था जब शिवसेना-बीजेपी गठबंधन को हार का सामना करना पड़ा था लेकिन फडणवीस ने हार नहीं मानी. इसके बाद वे 2004, 2009, और 2014, 2019 और अब 2024 में लगातार पांच बार नागपुर दक्षिण-पश्चिम सीट से विधायक चुने गए. 2010 में वे महाराष्ट्र बीजेपी के महासचिव बने और 2013 में उन्हें महाराष्ट्र बीजेपी का अध्यक्ष बनाया गया. यह वो वक्त था जब महाराष्ट्र में बीजेपी के बड़े चेहरे जैसे नितिन गडकरी और गोपीनाथ मुंडे का बोलबाला था लेकिन अपनी रणनीतियों और संघ से नज़दीकियों के चलते फडणवीस ने अपनी अलग पहचान बनाई. उन्होंने पार्टी को एक नई ऊर्जा दी और 2014 के चुनावों में बीजेपी को बड़ी जीत दिलाई.

सीएम बनने की यात्रा

2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने महाराष्ट्र में 122 सीटों पर जीत हासिल की. हालांकि, शिवसेना के साथ खींचतान के चलते सरकार बनाना आसान नहीं था लेकिन देवेंद्र फडणवीस की सधी हुई रणनीति और नेतृत्व क्षमता के चलते उन्हें मुख्यमंत्री बनाया गया. वो महाराष्ट्र के 44 साल की उम्र में दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री बने. तब उन्होंने न सिर्फ महाराष्ट्र की सत्ता संभाली बल्कि 47 सालों में पहले ऐसे सीएम बने जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया. फडणवीस ने 2014 से 2019 तक बतौर सीएम कई बड़ी योजनाएं शुरू कीं. उनका कार्यकाल इसलिए खास था क्योंकि 1972 के बाद वे पहले मुख्यमंत्री बने जिन्होंने अपना पूरा कार्यकाल पूरा किया. इसके अलावा, वे महाराष्ट्र के इतिहास में पहले गैर-कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने, जिन्होंने लगातार दूसरी बार सत्ता हासिल की. उनके नेतृत्व में महाराष्ट्र ने आर्थिक और औद्योगिक क्षेत्र में नए रिकॉर्ड बनाए. उनके कार्यकाल में शुरू हुआ “जलयुक्त शिवार अभियान” महाराष्ट्र को सूखा मुक्त बनाने की ओर एक बड़ा कदम था. इसमें 22,000 से ज्यादा गांवों में 6 लाख से ज्यादा जल संरचनाएं बनाई गईं. इस योजना ने सरकार को लोगों के दिलों से जोड़ा और ये एक जन आंदोलन बन गई. उन्होंने ‘आपले सरकार’ जैसी ऑनलाइन योजनाओं से पारदर्शिता लाई, और 393 सरकारी सेवाओं को ऑनलाइन कर लाखों लोगों को लाभ पहुंचाया.

चुनौती और वापसी

हालांकि, 2019 में बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूट गया. फडणवीस ने अजित पवार के साथ गठबंधन कर सरकार बनाने की कोशिश की, लेकिन यह सरकार महज 80 घंटे चली. हालांकि, उनकी एक बात ने सभी का ध्यान खींचा: “मेरा पानी उतरा देखकर मेरे किनारे घर मत बसा लेना, मैं समंदर हूं लौटकर वापस जरूर आऊंगा”  और 2022 में, फडणवीस ने इसे सच कर दिखाया. शिवसेना के बड़े नेता एकनाथ शिंदे को साथ लाकर उन्होंने महाराष्ट्र की सत्ता पर बीजेपी का परचम लहरा दिया. अब वे तीसरी बार महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के रूप में लौटे हैं.

फडणवीस ने हिंदुत्व के मुद्दे को हमेशा प्राथमिकता दी. चुनावी रणनीतियों में उन्होंने ग्रामीण इलाकों में संघ और हिंदू संगठनों की मदद से मतदाताओं को एकजुट किया. उनकी छवि ‘देवाभाऊ’ के रूप में भी मजबूत हुई, जहां उन्होंने ग्रामीण और महिला केंद्रित योजनाओं को आगे बढ़ाया. देवेंद्र फडणवीस का रिश्ता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से बेहद करीबी रहा. 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद से फडणवीस बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व की पहली पसंद बने. मोदी-शाह की जोड़ी ने महाराष्ट्र में फडणवीस पर भरोसा जताया, जो उनकी राजनीति का बड़ा आधार बना.

तो ये थी कहानी नागपुर के साधारण लड़के की, जो महाराष्ट्र का सबसे दमदार नेता बना. देवेंद्र फडणवीस न सिर्फ राजनीति के एक शानदार रणनीतिकार हैं बल्कि एक ऐसी शख्सियत हैं, जिन्होंने हर चुनौती को एक अवसर में बदला. और जैसा उन्होंने कहा था, “मैं समंदर हूं, लौटकर जरूर आऊंगा. आज, देवेंद्र फडणवीस एक बार फिर सीएम हैं. उनके सामने चुनौतियां तो हैं, लेकिन उनका सफर हमें सिखाता है कि सही रणनीति, मेहनत और धैर्य से हर बाधा को पार किया जा सकता है. राजनीति की इस कहानी में फडणवीस वह किरदार हैं, जो हमें प्रेरणा देते हैं कि मंजिल चाहे कितनी भी दूर क्यों न हो, हिम्मत और मेहनत से सब कुछ मुमकिन है.



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