विकसित भारत के संकल्प में 2023 ने तैयार की मजबूत नींव
2014 से पहले भारत में फौजियों के लिए हेलमेट, बुलेट प्रूफ जैकेट तक बाहर से आते थे. आज वो एयरक्राफ्ट विक्रांत बनाकर डोमेस्टिकली खड़ा कर देते हैं. यह वाकई सोचने को मजबूर करता है कि जिस देश की राजनीति ही ‘भारत विरोध’ पर केंद्रित रही हो, उसका कोई भी नेता भारत का गुणगान करने का जोखिम क्यों मोल ले रहा है?
वैश्विक एजेंसियों की नजर में भारत की अर्थव्यवस्था
दरअसल, भारत में तेज आर्थिक विकास पाकिस्तान ही नहीं दुनियाभर के देशों के लिए मिसाल बन रहा है. देश की अर्थव्यवस्था को आत्मनिर्भर बनाने के लिए भारत सरकार ने जो कदम उठाए हैं, उसी का सुफल है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ही नहीं, जानी-मानी विदेशी रेटिंग एजेंसियां भी मान रही हैं कि अगला साल भारत की इकोनॉमी का है. आईएमएफ 2024 के लिए भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट को 6.3 प्रतिशत मान रहा है.
वहीं, उसकी नजर में चीन की जीडीपी विकास दर 4.2 प्रतिशत, अमेरिका की 1.5 प्रतिशत, फ्रांस की 1.3 प्रतिशत, जापान की 1 प्रतिशत और जर्मनी की 0.9 प्रतिशत ही है. अमेरिकी रेटिंग एजेंसी मूडी ने 2024 के लिए यह ग्रोथ रेट 6.1 से 6.5 के बीच बताई है. अमेरिका की ही एक और रेटिंग एजेंसी फिच ने भी भारत के सकल घरेलू उत्पाद की ग्रोथ रेट को 6.2 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान लगाया है. यहां यह बताना समीचीन होगा कि राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान राजस्थान में आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने दावा किया था कि हमारी इकोनॉमी के लिए आने वाला समय बेहद कठिन होगा. भारत के लिए 2022-23 में 5 फीसदी आर्थिक विकास दर हासिल करना भी बहुत मुश्किल होगा. लेकिन आंकड़े बता रहे हैं कि रघुराम राजन की भविष्यवाणी बिल्कुल गलत साबित हो गई.
पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी: सच्चाई या सपना?
नीति आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष और अर्थशास्त्री अरविंद पनगढ़िया ने अनुमान लगाया कि भारत डेढ़-दो साल के अंदर ही अपने सकल घरेलू उत्पाद में 1 से 1.5 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि करेगा. इससे 2026 तक यह पांच ट्रिलियन डॉलर की इकोनॉमी बन जाएगा. इस आर्थिक ग्रोथ के मूल में सरकार की आत्मनिर्भर भारत की नीति ने प्रभावी भूमिका निभाई. दरअसल, 80 करोड़ आबादी को मुफ्त अनाज, दस करोड़ गरीब परिवारों को पांच लाख का स्वास्थ्य बीमा, 11 करोड़ परिवारों को गैस सिलेंडर की सुविधा, 3 करोड़ गरीब परिवारों को पक्के मकान, करीब 8 करोड़ किसानों को 6 हजार रूपये की सालाना मदद और हर गांव तक बिजली, सड़क, इंटरनेट तभी मिल सकती है, जब देश के पास इसके लिए पर्याप्त धन मौजूद हो. यह तभी संभव है जब देश का सकल घरेलू उत्पाद बढ़े. जीडीपी को बढ़ाने के लिए जो बदलाव किए गए हैं, उसी से यह कोरोना के भयावह दौर के बावजूद दुनिया की सबसे अच्छी इकोनॉमी वाला देश बन चुका है.
यही नहीं इसी साल आई संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट से साफ हुआ कि भारत में गरीबी में उल्लेखनीय रूप से कमी आई. 2005-06 से 2019-21 के बीच 15 वर्षों के कालखंड में 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले. वहीं नीति आयोग ने भी इस साल जो रिपोर्ट जारी की, उसके मुताबिक 2015-16 और 2019-21 के बीच भारत में 13.5 करोड़ लोग मल्टी डाइमेंशनल गरीबी से बाहर निकले.
यहां यह जानना भी दिलचस्प है कि भारत में आर्थिक आजादी लाने का श्रेय प्रधानमंत्री नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को दिया जाता है. 24 जुलाई 1991 को पेश किए गए बजट में डॉ. मनमोहन सिंह ने देश में एक नई खुली अर्थव्यवस्था की नींव रखी थी. तब देश की आर्थिक प्रगति के लिए खुली अर्थव्यवस्था में निजी कंपनियों की आजादी, निजी उद्यम को प्रोत्साहन,
सरकारी निवेश कम करने, खुले मार्केट को बढ़ावा देने के फैसले किए गए. लेकिन बाद में जब डॉ मनमोहन को ही दस साल तक देश की बागडोर संभालने का मौका मिला, तब उनके काम के नतीजे तो कुछ और ही गवाही देते नजर आए. देश में जिस तरह से आर्थिक निर्णय लिए गए, उससे मात्र 2 ट्रिलियन डॉलर का ही सकल घरेलू उत्पादन हो सका.लेकिन आज भारत गर्व के साथ दुनिया की पांच सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल है.
आरबीआई के आंकड़े दे रहे बेहतरीन इकोनॉमी के संकेत
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़े भी देश की निरंतर मजबूत होती इकोनॉमी के स्पष्ट संकेत देते हैं. आरबीआई के डेटा के मुताबिक 15 दिसंबर को खत्म हुए सप्ताह में विदेशी निवेश में उछाल के चलते विदेशी मुद्रा भंडार 9.11 बिलियन डॉलर बढ़कर 615.97 बिलियन डॉलर पर जा पहुंचा है. आपको जानकर हैरानी होगी कि सितंबर 2016 में यह 371.99 बिलियन डॉलर ही था. आरबीआई के मुताबिक इस दौरान विदेशी करेंसी एसेट्स में भी उछाल आया है और ये 8.34 बिलियन डॉलर बढ़कर 545.04 बिलियन डॉलर पर आ गया है. आरबीआई के गोल्ड रिजर्व में भी बढ़ोतरी आई है. आरबीआई का गोल्ड रिजर्व 446 मिलियन डॉलर की बढ़ोतरी के साथ 47.57 बिलियन डॉलर पर आ गया है. एसडीआर 135 मिलियन डॉलर बढ़कर 18.32 बिलियन डॉलर और इंटरनेशनल मॉनिटरी फंड में जमा रिजर्व 181 मिलियन डॉलर के उछाल के साथ 5.02 बिलियन डॉलर हो गया है.
इंडियन इकोनॉमी की खुशहाली के ये आंकड़े तब देखने को मिल रहे हैं, जब भारतीय अर्थव्यवस्था को पटरी से उतारने के प्रयास विदेशों तक से भी हुई हैं. बाहरी शक्तियों द्वारा जारी रिपोर्ट पर शेयर बाजार में मचा हाहाकार साल 2023 के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं था. लेकिन जल्द ही इस रिपोर्ट की कलई खुल गई. पहले जनता ने फिर बाजार ने इसे नकार दिया. आज बाजार नित नए रिकॉर्ड रच रहा है. इतिहास में पहली बार सेंसेक्स अपने ऑल टाइम हाई लेवल 71,000 को और निफ्टी 21450 को छू चुका है.
दुनिया में तेल की कीमतें बढ़ीं, भारत में हुईं कम
दरअसल, भारत सरकार ने तमाम विपरित परिस्थितियों के बावजूद पूरी ताकत के साथ राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा. जब पूरा विश्व रूस-यूक्रेन युद्ध में उलझा हुआ था, उस समय भी इंडिया फर्स्ट की नीति पर काम करते हुए रूस से कच्चे तेल का आयात बदस्तूर जारी रहा. यही वजह है कि जहां दुनिया के कई देशों में तेल की कीमतें बढ़ी हैं, वहीं भारत में तेल के दाम तुलनात्मक रूप से कम हुए हैं. आंकड़ों में देखें तो तेल की कीमतों में अक्टूबर 2021-2023 के बीच श्रीलंका में 118 प्रतिशत, पाकिस्तान में 73 प्रतिशत, अमेरिका में 39 प्रतिशत और फ्रांस में 24 प्रतिशत का उछाल आया है, वहीं भारत में कीमतें एक प्रतिशत कम हुई हैं.
देश के भंडार भरने से जन-जन में बढ़ रहा आत्मविश्वास
देश के जनमानस को राहत देने के साथ-साथ कुल राजस्व में बढ़ोत्तरी देश का आत्मविश्वास भी बढ़ाने वाली है. आपको याद होगा कि 2017 में जब देश में जीएसटी कानून लागू हुआ था तो कांग्रेस और विपक्षी दलों ने इसका कितना विरोध किया था. लेकिन अब उसी जीएसटी कानून के चलते ही देश के भंडार भर रहे हैं. इससे 2022-23 में ही देश को कुल राजस्व का 30 लाख करोड़ रूपये से अधिक मिला है, जबकि यूपीए सरकार में टैक्सों के मकड़जाल के चलते 2012-13 के दौरान मात्र 11 लाख करोड़ रूपये का राजस्व मिला था. यह तय है कि आर्थिक नीतियां और सोच देश में विकास और आम लोगों के जीवन में तभी तरक्की ला सकती हैं, जब ये न सिर्फ लोगों की उत्पादन क्षमता को बढ़ाएं, बल्कि उनमें विश्वास और स्थायित्व का भाव भी पैदा करें. इसी मूल भावना के साथ मोदी सरकार की नीतियां जनमानस के जीवन को बदलने का जो काम कर रही हैं, वो सिर्फ देश के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए भी जीवंत उदाहरण है.