इराक के न्यूक्लियर रिएक्टर पर इजरायल की वो सर्जिकल स्ट्राइक, जिससे हिल गई थी दुनिया
दरअसल, इजराइल और ईरान प्रॉक्सी वॉर (छद्म युद्ध) लड़ रहे हैं. ईरान हिजबुल्लाह और फिलिस्तीनी इस्लामिक जिहाद को फंडिंग कर रहा है. कहा जाता है कि ईरान अरब दुनिया के बॉस बनना चाहता है. ईरान अपने परमाणु हथियार कार्यक्रम को लगातार बढ़ा रहा है. इजरायल ने इसपर भी चिंता जाहिर की है. अपने दोस्त अमेरिका के साथ मिलकर इजरायल भी ईरान के कथित परमाणु हथियार कार्यक्रम की निंदा करने में मुखर रहा है. ईरान दावा करता है कि वह अपने परमाणु हथियार से दुनिया को तबाह कर सकता है.
ईरान ने कम से कम आधिकारिक तौर पर इस बात पर ज़ोर दिया है कि इजरायल पर हमास के हमले में उसकी कोई भागीदारी नहीं है. जबकि इजरायल के साथ रिश्ते सुधारने की इच्छा रखने वाले कुछ पड़ोसी अरब इस हालात में मध्यस्थता की भूमिका निभाने का मौका देख रहे हैं. इसमें कतर और सऊदी जैसे देश शामिल हैं.
क्या है ऑपरेशन ओपेरा?
इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन ने 1970 के दशक में न्यूक्लियर रिएक्ट बनाने का काम शुरू किया था. उन्होंने तमुज़ 1 और तमुज़ 2 नाम के दो न्यूक्लियर रिएक्टर बनाने के लिए फ्रांस के साथ डील साइन की. इजरायल जानता था कि इराक का न्यूक्लियर रिएक्टर उसके लिए बड़ा खतरा है, क्योंकि तानाशाह के तहत इराक का न्यूक्लियर पावर बनना खतरनाक होगा.
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इजरायल के चिंतित होने के पीछे का मुख्य कारण सद्दाम हुसैन की कुछ सालों पहले दी गई एक धमकी थी. इसमें सद्दाम हुसैन ने कहा था कि अगर इराक में न्यूक्लियर बम बना, तो उसका इस्तेमाल सिर्फ यहूदियों (इजरायल) पर होगा. यही वजह थी कि इजरायल इस न्यूक्लियर रिएक्टर को रोकने के लिए पूरी कोशिश में लग गया. इसके लिए उसने कूटनीतिक और राजनयिक तरीके भी अपनाए. लेकिन इसमें कोई खास सफलता नहीं मिल पा रही थी. ऐसे में इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री मेनचिम बेगिन ने इराक के उस निर्माणाधीन न्यूक्लियर रिएक्टर पर हमला करने की योजना बनाई.
एयर स्ट्राइक के रूट को लेकर थी दिक्कत
हमले के लिए रूट को लेक दिक्कत थी. क्योंकि टारगेट के लिए एक बड़ी दूरी (1100 किमी) के रास्ते में कई दुश्मन देश आते और सीमित मात्रा में फ्यूल भी था. आखिरकार हमले के लिए रूट का प्रस्ताव तत्कालीन इजरायली वायु सेना प्रमुख मेजर जनरल डेविड आइवरी ने दिया. योजना यह थी कि इजरायल के फाइटर प्लेन दुश्मन देश सऊदी अरब और जॉर्डन के एयर स्पेस के रास्ते करीब 1600 किलोमीटर की उड़ान भरकर इराक में जाएंगे और रिएक्टर को तबाह करेंगे.
7 जून 1981 को हुआ हमला
7 जून 1981 को शाम 4 बजे इजरायल के 14 फाइटर जेट ने एट्ज़ियन एयरपोर्ट से उड़ान भरी. इजरायल डिफेंस फोर्सेज (IDF) की वेबसाइट पर उपलब्ध ‘ऑपरेशन ओपेरा’ की डिटेल के मुताबिक, करीब 5.30 बजे इजरायल के फाइटर जेट ने इराक में ओसिरक न्यूक्लियर रिएक्टर पर हमला किया और सफलतापूर्वक अपना मिशन पूरा किया.
रेडियो साइलेंस के साथ फाइटर जेट्स ने भरी उड़ान
फाइटर जेट ने रेडियो साइलेंस के साथ और रडार स्विच्ड ऑफ करके इजरायल से उड़ान भरी थी. इसने 1100 किलोमीटर के रास्ते पर उड़ान भरी. ये दूरी दिल्ली से मुंबई तक उड़ान भरने के बराबर है. फाइटर पायलटों ने रडार की पकड़ से बचने के लिए बेहद कम ऊंचाई पर दुश्मन के इलाके में उड़ान भरी, जो पायलटों के हाई स्किल लेवल को दिखाता है. जेट पूरी तरह से आउटर फ्यूल टैंकों से भरे हुए थे, जिन्हें इस्तेमाल करने के बाद बंद कर दिया गया था.
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जॉर्डन के राजा हुसैन ने इराक की ओर जाते देखा था फाइटर जेट
हमले के दौरान जॉर्डन के राजा हुसैन पोर्ट सिटी अकाबा में छुट्टियां मना रहे थे. फाइटर जेट को ऊपर से गुजरते देख उन्होंने तुरंत इराकियों को इसकी जानकारी दी. जॉर्डन के राजा ने इराकी सरकार को चेताया कि वे इजरायली हमले का निशाना हो सकते हैं. इजरायली पत्रकार श्लोमो नाकदिमोन ने 2003 में अपने एक आर्टिकल में लिखा, “ऐसा लगता है कि जॉर्डन के राजा का मैसेज इराक को मिला ही नहीं. शायद कम्युनिकेशन एरर की वजह से मैसेज पहुंच न पाया हो.”
इराक के 10 लोगों की भी हुई मौत
इस पूरे ऑपरेशन में इजरायल को किसी भी तरह का नुकसान नहीं हुआ. वहीं, इराक के 10 लोग मारे गए. उनका महत्वपूर्ण न्यूक्लियर रिएक्टर बनने से पहले ही बर्बाद हो गया.
न्यूक्लियर रिएक्टर पर एयर स्ट्राइक को लेकर कई देशों ने इजरायल की निंदा की, लेकिन 1990-91 में पहले खाड़ी युद्ध के बाद नेताओं ने इस अविश्वसनीय ऑपरेशन का समर्थन किया, क्योंकि इजरायली हमले ने इराक को आखिरकार न्यूक्लियर हथियार हासिल करने से रोक दिया था.
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