“Same-Sex रिलेशनशिप ठीक, लेकिन विवाह नहीं..” : NDTV से बोले BJP सांसद सुशील मोदी

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“Same-Sex रिलेशनशिप ठीक, लेकिन विवाह नहीं..” : NDTV से बोले BJP सांसद सुशील मोदी

सुशील मोदी ने कहा कि मैं समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करता हूं.

नई दिल्ली:

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के राज्यसभा सांसद सुशील मोदी ने संसद में सोमवार को समलैंगिक विवाह का कड़ा विरोध किया. उन्होंने कहा कि इस तरह के सामाजिक मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के दो जज बैठकर फ़ैसला नहीं कर सकते हैं. एनडीटीवी से बात करते हुए सुशील मोदी ने कहा कि समलैंगिक रिलेशनशिप ठीक है, लेकिन समलैंगिक विवाह नहीं.

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NDTV को दिए एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में उन्होंने कहा, “किसी भी कानून को देश की परंपराओं और संस्कृतियों के अनुरूप होना चाहिए. हमें यह आंकलन करना चाहिए कि भारतीय समाज क्या है और क्या लोग इसे स्वीकार करने के लिए तैयार हैं.”

उन्होंने कहा, “समान-लिंग संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया गया है… लेकिन शादि एक पवित्र संस्था है. समान-लिंग वाले जोड़ों का एक साथ रहना एक बात है, लेकिन उन्हें कानूनी दर्जा देना अलग बात है.”

संसद में समान सेक्स विवाह के खिलाफ बात करने वाले सुशील मोदी ने NDTV को बताया कि समान सेक्स संबंध स्वीकार्य हैं, लेकिन ऐसे विवाहों की अनुमति कई स्तरों पर समस्याओं को जन्म देगी. उन्होंने इससे पहले सोमवार को राज्यसभा में बोलते हुए सामाजिक और सांस्कृतिक संदर्भ में इस पर आपत्ति जताई थी.

BJP के राज्यसभा सदस्य ने शून्यकाल में इस विषय को उठाया और कहा कि ‘कुछ वामपंथी-उदार कार्यकर्ता’ प्रयास कर रहे हैं कि समलैंगिक विवाह को कानूनी संरक्षण मिल जाए. सुशील मोदी ने इसे अस्वीकार्य करार देते हुए कहा, “न्यायपालिका को ऐसा कोई निर्णय नहीं देना चाहिए, जो देश की सांस्कृतिक मूल्यों के विरुद्ध हो…”

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने कहा, “मैं समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करता हूं… भारत में, न समलैंगिक विवाह को मान्यता है, न यह मुस्लिम पर्सनल लॉ जैसे किसी भी असंहिताबद्ध पर्सनल लॉ या संहिताबद्ध संवैधानिक कानूनों में स्वीकार्य है… समलैंगिक विवाह देश में मौजूद अलग-अलग पर्सनल लॉ के बीच बने नाज़ुक संतुलन को पूरी तरह तबाह कर देंगे…”

सुशील मोदी ने केंद्र सरकार से कोर्ट में भी समलैंगिक विवाह के विरुद्ध कड़ाई से तर्क रखने का आग्रह किया. BJP सांसद ने कहा, “इतने अहम सामाजिक मुद्दे पर दो जज बैठकर फ़ैसला नहीं कर सकते… इस पर संसद में भी बहस होनी चाहिए, और व्यापक तौर पर समाज में भी…”

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