लखीमपुर खीरी हिंसा मामला: केंद्रीय मंत्री के बेटे आशीष मिश्रा पर चलेगा किसानों की हत्या का मुकदमा, आरोप तय
लखनऊ:
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा के बेटे आशीष मिश्रा पर पिछले साल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे चार किसानों और एक पत्रकार की हत्या के आरोप में मुकदमा चलेगा. लखीमपुर की एक अदालत ने आज उनके और अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोप तय किए और घोषणा की कि मुकदमा 16 दिसंबर से शुरू होगा. यह अदालत द्वारा मिश्रा की डिस्चार्ज याचिका खारिज करने के एक दिन बाद आया है.
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इस घटना में मारे गए पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन कश्यप ने कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. उन्होंने कहा, “मैं न्यायपालिका का शुक्रगुज़ार हूं. मैं सुप्रीम कोर्ट का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं, देरी हुई, लेकिन आरोप तय किए गए हैं. मुझे न्याय व्यवस्था पर पूरा भरोसा है.”
इस घटना में मारे गए लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील मोहम्मद अमान ने कहा, “मुकदमे में देरी हुई है, आरोप तय करने में 9 महीने लग गए और वह भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस बारे में टिप्पणी किए जाने के बाद. किसानों को न्याय की उम्मीद है. मुझे लगता है कि ट्रायल तेजी से होना चाहिए.”
पुलिस की चार्जशीट में मिश्रा पर हत्या का आरोप लगाया गया है. ऐसा आरोप है कि वह एक एसयूवी में थे, जो 3 अक्टूबर को लखीमपुर खीरी में एक विरोध मार्च के दौरान चार किसानों और एक पत्रकार के ऊपर चढ़ा दी गई थी. घटना के चौंकाने वाले दृश्यों में दिखाया गया था कि कार तेज गति से प्रदर्शन कर रहे किसानों को टक्कर मार रही थी. गुस्साए किसानों ने एसयूवी का पीछा किया और कथित तौर पर चालक और दो भाजपा कार्यकर्ताओं की पीट-पीटकर हत्या कर दी.
इस घटना ने सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ आक्रोश की लहर फैला दी और सरकार पर गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा को बचाने का आरोप लगाया गया. घटना से पहले केंद्रीय मंत्री का एक भाषण, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर “किसानों को दो मिनट में ठीक करने” की धमकी दी थी, अगर उन्होंने आंदोलन बंद नहीं किया. तो हत्याओं के बाद कई लोगों ने उनके इस्तीफे की मांग की.
सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद आशीष मिश्रा को किसानों की मौत के कुछ दिनों बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पुलिस जांच पर सवाल उठाते हुए उन्हें फरवरी में जमानत दे दी थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल 18 अप्रैल को आशीष मिश्रा को मिली जमानत रद्द करते हुए उन्हें एक हफ्ते के अंदर सरेंडर करने को कहा था. अदालत ने देखा कि पीड़ितों को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में “निष्पक्ष और प्रभावी सुनवाई” से वंचित कर दिया गया था, और कहा कि उच्च न्यायालय ने “सबूतों का अदूरदर्शी दृष्टिकोण” लिया.
लखीमपुर अदालत के समक्ष दायर डिस्चार्ज याचिका में, आशीष मिश्रा और अन्य अभियुक्तों ने तर्क दिया था कि उन पर गलत आरोप लगाए गए हैं. कोर्ट ने सभी आरोपियों की याचिका खारिज कर दी.
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