Gita Jayanti 2022: इस दिन मनाई जाएगी गीता जयंती, जानें सही डेट, शुभ मुहूर्त और महत्व
Gita Jayanti 2022 Date, Shubh Muhurat, Puja Vidhi: हिंदू धर्म में गीता जयंती का खास धार्मिक महत्व है. हर साल गीता जयंती मार्गशीर्ष महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. साल 2022 में गीता जयंती 03 दिसंबर को मनाई जाएगी. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. जिसके बाद भगवद-गीता अस्तित्व में आई. यही वजह है कि गीता जयंती को लोग खासतौर पर मनाते हैं. आइए जानते हैं गीता जयंती की तिथि, शुभ मुहूर्त और खास महत्व के बारे में.
गीता जयंती 2022 तिथि और शुभ मुहूर्त | Gita Jayanti 2022 Date and Shubh Muhurat
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गीता जयंती डेट- 03 दिसंबर 2022 शनिवार
मोक्षदा एकादशी तिथि- शनिवार, 03 दिसंबर 2022
एकादशी तिथि प्रारम्भ – दिसम्बर 03, 2022 को 05:39 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – दिसम्बर 04, 2022 को 05:34 ए एम बजे
गीता जयंती 2022 का महत्व | Gita Jayanti 2022 Importance
गीता को हिंदू धर्म में धार्मिक ग्रंथ के रूप में स्वीकार किया गया है. गीता की उत्पत्ति 5159 साल पहले हुई थी. सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने अपने परम मित्र अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. श्रीमद्भगवद्गीता में कुल 18 अध्याय और 700 श्लोक हैं. जिसमें मानव जीवन के हरेक पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया गया है. कहा जाता है कि गीता का प्रत्येक श्लोक मानव जीवन के लिए पाथेय है. हिंदू धर्म में जो स्थान उपनिषद्, ब्रह्मसूत्र, धर्म सूत्रों का है, वहीं स्थान गीता का भी है. कहा जाता है कि इस धर्म ग्रंथ का जो कोई भी अध्ययन और मनन करता है, उसके जीवन की दशा और दिशा दोनों में सकारात्मक बदलाव आने लगते हैं.
गीता जयंती 2022 पूजन विधि | Gita Jayanti 2022 Pujav Vidhi
गीता जयंती के दिन मोक्षदा एकादशी भी मनाई जाती है. ऐसे में इस दिन व्रत रखना शुभ और मंगलकारी होता है. गीता जयंती की का विधिवत व्रत रखने के लिए इससे एक दिन पहले यानी दशमी के दिन से सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए. गीता जयंती के दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें. इसके साथ ही इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर भगवान विष्णु का ध्यान करें. इसके बाद नित्यकर्म से निवृत्त होकर पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान करें. इसके बाद घर के पूजा स्थल पर या किसी मंदिर में जाकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा करें. भगवान को पीले पुष्प, फूल, धूप-दीप आदि अर्पित करें. इसके बार गीता का पाठ करें. फिर शाम के समय आरती अर्चना और प्रार्थना के पश्चात फलाहार करें. अगले दिन व्रत का पारण करें. एकदाशी व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है.
(Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. एनडीटीवी इसकी पुष्टि नहीं करता है.)
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