‘असली शिवसेना कौन?’ मामले में उद्धव ठाकरे गुट को सुप्रीम कोर्ट से जोरदार झटका

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सुप्रीम कोर्ट में संविधान पीठ ने इस मामले की सुनवाई पांच घंटे तक की. शिवसेना बनाम शिवसेना मामले की जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाले पांच जजों की संविधान पीठ ने सुनवाई की. पिछली सुनवाई में जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा था कि सवाल यह है कि इस मामले में चुनाव आयोग का दायरा तय किया जाएगा. लेकिन एक सवाल है कि क्या चुनाव आयोग को आगे बढ़ना चाहिए या नहीं, तो ऐसे में हम अर्जी पर विचार कर सकते है. 

उद्धव ठाकरे कैंप की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि 10वीं अनुसूची के मद्देनजर पार्टी में किसी गुट में फूट का फैसला आयोग कैसे कर सकता है, यह एक सवाल है. वे आयोग के पास किस आधार पर गए हैं? कोर्ट को तय करना है कि जबतक विधायकों की अयोग्यता पर सुप्रीम कोर्ट फैसला नहीं कर लेता, चुनाव आयोग चुनाव चिन्ह पर फैसला कर सकता है या नहीं.  शिंदे कैंप की ओर से नीरज किशन कौल ने कहा कि चुनाव आयोग के सामने चुनाव चिन्ह की कार्रवाई का सुप्रीम कोर्ट में चल रही कार्रवाई से कोई लेना देना नहीं है. सुप्रीम कोर्ट में स्पीकर की शक्ति पर सुनवाई है जो चुनाव आयोग के सामने कार्रवाई से पूरी अलग है.

कपिल सिब्बल ने इस मामले की बहस की और जस्टिस चंद्रचूड़ ने सिब्बल से पूछा कि शिंदे ने चुनाव आयोग में कब अर्जी दी और किस हैसियत से दी. सदन के सदस्य होने के तौर पर या पार्टी के सदस्य के तौर पर? सिब्बल ने इसपर कहा कि चुने हुए सदस्य के तौर पर. पूरे विवाद की शुरुआत 20 जून से हुई जब शिवसेना का एक विधायक एक सीट हार गया, विधायक दल की बैठक बुलाई गई.  फिर उनमें से कुछ गुजरात और फिर गुवाहाटी चले गए. उन्हें उपस्थित होने के लिए बुलाया गया था और एक बार जब वे उपस्थित नहीं हुए तो उन्हें विधान सभा में पद से हटा दिया गया था.

सिब्बल ने कहा कि फिर हमने कहा कि अगर आप शामिल नहीं होंगे तो आपको हटा दिया जाएगा और फिर उन्हें हटा दिया गया. तब उन्होंने उल्टा कहा की आप पार्टी के नेता नहीं हैं. 29 जून को हमने अयोग्यता की कार्यवाही की, तब वे वापिस आए, जो भाजपा के साथ अलग सरकार बनाना चाहते थे.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि केवल ये तथ्य कि संविधान पीठ को मामला भेजा गया है, संवैधानिक प्राधिकरण को कानून की शक्ति के तहत अपनी शक्तियों का सहारा लेने से नहीं रोकता है. कोर्ट के सामने एक मुद्दा किसी पार्टी में विभाजन पर निर्णय लेने के लिए ECI की शक्ति है. लेकिन यह अपने आप में प्राधिकरण को आगे बढ़ने से नहीं रोकता है यदि उनके पास कानून के तहत अधिकार है.

सिब्बल ने कहा कि वे खुद इस तरह चुनाव चिन्ह का दावा नहीं कर सकते. चुनाव आयोग उन्हें मान्यता नहीं दे सकता. वो मूल पार्टी के सदस्य थे जिन्होंने स्वेच्छा से पार्टी छोड़ दी थी. अयोग्यता कार्रवाई शुरू होने के बाद शिंदे चुनाव आयोग के पास पहुंचे.

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या स्पीकर के पास उस प्रक्रिया को तय करने की शक्ति है जो अन्यथा चुनाव आयोग के दायरे में है?  हमें यह परिभाषित करने की आवश्यकता है कि चुनाव चिन्ह के लिए स्पीकर और ECI  का दायरा क्या है? 10वीं अनुसूची के तहत स्पीकर ये तय करता है कि सदस्य अयोग्य हुआ है या नहीं.  ये तय करने के लिए सबूत नहीं देता कि गुट राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं या नहीं. 

सिब्बल ने कहा कि लेकिन वे 10वीं अनुसूची के अनुसार अलग हुए लोग मूल राजनीतिक दल के सदस्य बने हुए हैं. यदि आप कहते हैं कि आप अलग गुट हैं लेकिन आप मूल राजनीतिक दल का हिस्सा बने रहते हैं, तो इसका मतलब ये है कि आपने पार्टी की सदस्यता को छोड़ दिया हैं. आज चलन यह है कि लोग राज्यपाल के पास जाते हैं और लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को उखाड़ फेंकते हैं. लोकतंत्र कहां जा रहा है? इस तरह कोई सरकार नहीं चल सकती. व्हिप कहता है कि आपको इस उम्मीदवार को वोट देना है, वे बीजेपी उम्मीदवार को वोट देते हैं. यह सब 29 तारीख के बाद होता है जो इस अदालत के आदेश का विषय है.  जस्टिस एमआर शाह ने कहा, सवाल यह है कि अयोग्यता का चुनाव चिन्ह आदि पर क्या प्रभाव पड़ेगा.

सिब्बल ने कहा कि किसी भी सरकार को बाहर किया जा सकता है और उनका अपना स्पीकर होता है जो अयोग्यता पर फैसला नहीं करेगा. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि चुनाव आयोग की शक्तियों का दायरा देखना जरूरी है.

जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने कहा कि इसे इस कोण से देखें, यदि पार्टी के सदस्य के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही होती है और पार्टी उसे हटा देती है. तो सदन के सदस्य पर क्या असर पड़ेगा ?  वह विधायक के रूप में बैठा रहेगा. लेकिन सदस्य के रूप में तो चुनाव चिन्ह इस मामले में कहां से आया. 

सिब्बल ने कहा कि जब मुझे पार्टी से निकाल दिया जाता है तो यह स्वैच्छिक कार्य नहीं है. मैं मूल पार्टी का सदस्य हूं और मुझे उस चुनाव चिह्न पर चुना गया है. मुझे उस पार्टी के अनुशासन में रहना होगा. इसके बड़े दुष्परिणाम होते हैं.  इस तरह किसी भी सरकार को गिराया जा सकता है.

उद्धव ठाकरे कैंप की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि आप शिवसेना छोड़ दें लेकिन आप शिवसेना का भरोसा नहीं छोड़ना चाहते हैं.  इसलिए आप असली शिवसेना होने का दावा करते हैं जिसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है. आप दोनों परिस्थितियों को हासिल नहीं कर सकते. सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एकनाथ शिंदे ने सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित रहते चुनाव आयोग का दरवाजा खटखटाया. जस्टिस चंद्रचूड़ ने पूछा कि क्या चुनाव आयोग इस आधार पर आगे बढ़ सकता है कि ये 40 लोग  अब पार्टी का हिस्सा नहीं हैं? सिंघवी ने कहा कि जब अयोग्यता का फैसला कोर्ट द्वारा नहीं किया गया या उसका फैसला आना बाकी है तो ऐसे में आयोग कैसे आगे बढ़ सकता है.

शिंदे कैंप की ओर से नीरज किशन कौल ने बहस शुरू करते हुए कहा जून के तीसरे सप्ताह के आसपास शिवसेना के भीतर विधायको के छोटे से गुट ने शिंदे को हटाने का फैसला किया. हालांकि उनके पास बहुमत नहीं था.  29 जून को अदालत ने जवाब दाखिल करने के लिए 12 जुलाई तक का समय दिया था. इस बीच सुरेश प्रभु द्वारा एक रिट दायर की गई थी, प्रभु को चीफ व्हिप के तौर पर कुछ विधायकों द्वारा चुना गया जो बहुमत मैं नहीं थे. जो नियुक्ति अवैध थी. प्रभु ने कहा कि 42 विधायकों के खिलाफ अयोग्यता लंबित होने के मद्देनजर कोई फ्लोर टेस्ट नहीं होना चाहिए. हमारी याचिका में स्पष्ट दलीलें हैं कि शिवसेना कौन है चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में ये तय करना है.

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