नई दिल्ली:
भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम के वास्तुकार राजगोपाल चिदंबरम (88) का शनिवार सुबह मुंबई में निधन हो गया. उन्होंने 1974 और 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षणों में अहम भूमिका निभाई थी. विश्वस्तरीय भौतिक विज्ञानी और कुशल विज्ञान प्रशासक चिदंबरम ने परमाणु भौतिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, साथ ही ग्रामीण भारत में समुदायों को सशक्त बनाने के लिए नवीन तकनीकों की शुरुआत की.
चिदंबरम 1962 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (बार्क) में शामिल हुए और 1990 में इसके निदेशक बने. 1993 में, उन्होंने परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग में सचिव के रूप में देश के परमाणु कार्यक्रम का नेतृत्व किया, इस पद पर वह 2000 तक रहे.
सेवानिवृत्ति के बाद, उन्हें 2001 में भारत सरकार के प्रमुख वैज्ञानिक सलाहकार (पीएसए) के रूप में नियुक्त किया गया, जिस पद पर वह 2018 तक रहे. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (आईएईए) (1994-1995) के संचालक मंडल के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया.
पीएसए के रूप में, चिदंबरम ने नैनो-इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में भारत के प्रयासों का मार्गदर्शन किया, राष्ट्रीय ज्ञान नेटवर्क को क्रियान्वित किया, तथा उन्नत प्रौद्योगिकियों के लिए ग्रामीण अनुप्रयोगों का पता लगाने के लिए ग्रामीण प्रौद्योगिकी कार्य समूह (आरयूटीएजी) की स्थापना की.
उन्होंने ऊर्जा, स्वास्थ्य सेवा और रणनीतिक आत्मनिर्भरता जैसे क्षेत्रों में भी पहल की और कई परियोजनाओं का संचालन किया, जिससे भारत के विज्ञान और प्रौद्योगिकी परिदृश्य में उल्लेखनीय प्रगति हुई. चिदंबरम को भारत के परमाणु हथियार कार्यक्रम में उनके योगदान के लिए जाना जाएगा, जिसके साथ वह 1967 से जुड़े हुए थे, जब शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट तकनीक की दुनिया भर में काफी चर्चा हुई थी. उन्होंने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी द्वारा आयोजित विभिन्न वैश्विक सम्मेलनों में भारत का प्रतिनिधित्व किया.
- वर्ष 1974 के परमाणु परीक्षण ऑपरेशन ‘स्माइलिंग बुद्धा’ के तहत चिदंबरम को व्यक्तिगत रूप से मुंबई से राजस्थान के पोखरण में प्लूटोनियम लाने के लिए जाना जाता था.
- चिदंबरम 1998 में पोखरण-दो परीक्षण, जिसे ऑपरेशन शक्ति नाम दिया गया पर काम करते समय रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) के तत्कालीन अध्यक्ष ए पी जे अब्दुल कलाम के साथ सैन्य वर्दी में नजर आए थे.
- वर्ष 1998 में 11 मई और 13 मई को जब पांच परमाणु परीक्षण किए गए थे, तब चिदंबरम भारत के परमाणु कार्यक्रम के प्रमुख थे. तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने तब भारत को परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र घोषित किया था. पांच परमाणु परीक्षणों में थर्मोन्यूक्लियर डिवाइस भी शामिल था, जिसे न्यूट्रॉन बम के नाम से जाना जाता है.
परमाणु परीक्षण किए जाने के कुछ दिनों बाद वाजपेयी द्वारा पोखरण में ‘ग्राउंड जीरो’ का दौरा भी इस बात का प्रमाण था कि उस स्थल पर रेडियोधर्मिता से जुड़ा कोई प्रदूषण नहीं था. एक दशक से भी अधिक समय बाद, जब 1998 के परमाणु परीक्षणों से जुड़े कुछ वैज्ञानिकों ने थर्मो-न्यूक्लियर डिवाइस की प्रभावकारिता पर सवाल उठाया, तो चिदंबरम और उनके उत्तराधिकारी अनिल काकोदकर ने परिणाम का जोरदार बचाव किया.
चिदंबरम का जन्म 12 नवंबर 1936 को चेन्नई में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मेरठ के सनातन धर्म उच्च विद्यालय से प्राप्त की. आठवीं कक्षा से आगे उन्होंने चेन्नई के मायलापुर में पीएस उच्च विद्यालय से पढ़ाई की और प्रेसीडेंसी कॉलेज से स्नातक किया.
चिदंबरम ने बेंगलुरु में भारतीय विज्ञान संस्थान से स्नातकोत्तर की पढ़ाई की. उन्हें 1975 में पद्म श्री और 1999 में पद्म विभूषण सहित कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. उन्हें कई विश्वविद्यालयों से मानद डॉक्टरेट की उपाधि भी मिली और वह प्रतिष्ठित भारतीय और अंतरराष्ट्रीय विज्ञान अकादमियों के फेलो थे. उनके परिवार में पत्नी चेल्ला और बेटियां निर्मला और नित्या हैं.
परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष अजीत कुमार मोहंती ने कहा, ‘‘डॉ. चिदंबरम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र के दिग्गज थे, जिनके योगदान ने भारत की परमाणु क्षमता और रणनीतिक आत्मनिर्भरता को बढ़ाया. उनका निधन वैज्ञानिक समुदाय और राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है.”
उन्होंने कहा कि चिदंबरम को एक अग्रणी, प्रेरणादायी नेता और अनगिनत वैज्ञानिकों एवं इंजीनियरों के समर्पित मार्गदर्शक के रूप में याद किया जाएगा.
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