नई दिल्ली:
समाजवादी पार्टी की बागी विधायक पल्लवी पटेल सोमवार को विधानसभा में भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाना चाहती थीं, लेकिन विधानसभा अध्यक्ष ने इसकी इजाजत नहीं दी. इस पर उनकी विधानसभा अध्यक्ष से बहस भी हो गई. भ्रष्टाचार का मुद्दा सदन में न उठाने देने से नाराज पल्लवी पटेल विधानसभा परिसर में धरने पर बैठ गई थीं. वो करीब आठ घंटे तक धरने पर बैठी रहीं. यूपी सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने उन्हें रात साढ़े 10 बजे मनाकर धरना समाप्त करवाया. पल्लवी पटेल प्रावधिक शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार के मुद्दे को सदन में उठाना चाहती थीं. इस विभाग के मंत्री कोई और नहीं बल्कि पल्लवी पटेल के जीजा आशीष पटेल हैं. आशीष केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल के पति हैं.आइए जानते हैं कि पल्लवी पटेल जिस मामले को उठाना चाहती थीं, वह है क्या और पटेल परिवार में किस बात की लड़ाई चल रही है.
पल्लवी पटेल के आरोप क्या हैं
पल्लवी पटेल कौशांबी की सिराथू सीट से समाजवादी पार्टी की विधायक हैं. सोमवार को वो विधानसभा में प्राविधिक शिक्षा विभाग के तहत आने वाले राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेजों में विभागाध्यक्ष पद पर सीधी भर्ती के नाम पर हुई कथित अनियमितता का मामला उठाना चाहती थीं. उनका कहना है कि इसमें आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रदेश के पॉलिटेक्निकों में विभागाध्यक्षों की नियुक्ति उत्तर प्रदेश चयन सेवा आयोग की ओर से की जाती है.लेकिन नियमों को ताकपर रखकर विभागाध्यक्ष के पद पर पदोन्नति के आधार पर 250 लोगों की भर्ती की गई है.
उनका आरोप है कि इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति से 25-25 लाख रुपये की रिश्वत ली गई. उनका कहना है कि इस तरह प्रमोशन देने से आरक्षित वर्गों की हकमारी हुई है. इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को इस मामले में जवाब देना चाहिए. उन्होंने इस मामले में शामिल लोगों पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने की मांग की है.
आशीष पटेल ने अपनी सफाई में क्या कहा है
उत्तर प्रदेश प्रावधिक शिक्षा विभाग के मंत्री हैं आशीष पटेल. आशीष रिश्ते में पल्लवी पटेल के बहनोई हैं. आशीष पल्लवी की छोटी बहन और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की पति हैं. आशीष ने इन आरोपों पर ट्वीटर पर सफाई दी है.उनका कहना है कि पल्लवी के आरोप बेबुनियाद हैं. सोशल मीडिया और मीडिया में पर उनकी राजनीतिक हत्या करने की साजिश रची जा रही है. आशीष का कहना है कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहें तो वो मंत्री पद से इस्तीफा दे देंगे.उन्होंने कहा है कि मेरे मंत्रित्व काल में प्राविधिक शिक्षा विभाग में वंचित वर्ग से आने वाले कार्मिकों के हितों की रक्षा के बारे में पूरे उत्तर प्रदेश को पता है.आशीष ने बुधवार को एक ट्वीट किया है. इसमें उन्होंने कहा है कि प्रवक्ताओं को वरिष्ठता के आधार पर विभागाध्यक्ष बनाया गया है. उन्होंने कहा है कि इस तरह 177 प्रवक्ताओं को विभागाध्यक्ष बनाया गया है. उनका कहना है कि इस समय पदोन्नती में आरक्षण का प्रावधान नहीं है.
मीडिया और सोशल मीडिया पर मेरी राजनीतिक हत्या करने के लिए साज़िश के तहत तथ्यहीन और अनर्गल आरोप लगाए जा रहे हैं।
मेरे मंत्रित्व काल में प्राविधिक शिक्षा विभाग में वंचित वर्ग से आने वाले कार्मिको के हितों की रक्षा के बारे में पूरे उत्तर प्रदेश को पता है ।— Ashish Patel (@ErAshishSPatel) December 15, 2024
आशीष ने अपने विरोधियों को चेतावनी भी दी है.उनका कहना है कि साजिश रचने वाले समझ लें, मैं माननीय विधायक योगेश वर्मा नहीं हूं, जो थप्पड़ खाने और अपमानित होने के बाद भी किसी मजबूरी में चुप रह गए. मैं सरदार पटेल का वंशज हूं, डरना नहीं मुकाबला करना मेरी फितरत में है. कोई कंकड़ फेंकेगा तो जवाब पत्थर से मिलेगा.उन्होंने लिखा है कि कितनी भी साजिश रचें, चरित्रहनन की कोशिश करें, अपना दल (एस) सामाजिक न्याय से जुड़े मामले उठाते रहेगा.
साजिशों के जाल बुनते रहिए, मैं डरने वालों में नहीं हूं।
1- धरनारत विधायक के साथ धरने पर बैठे और किसी बाहरी व्यक्ति से लगातार निर्देश प्राप्त कर रहे दो व्यक्ति कौन थे, जो उस समय देर रात राज्य के सबसे सुरक्षित परिसर विधानसभा में मौजूद थे, जहां सदन की कार्यवाही खत्म होने के बाद… pic.twitter.com/bkGDh76UY3— Ashish Patel (@ErAshishSPatel) December 18, 2024
दरअसल यह मामला राजकीय पॉलिटेक्निक कॉलेजों में विभागाध्यक्ष की सीधी भर्ती करने की जगह कॉलेजों में कार्यरत लेक्चरर्स को प्रमोशन देकर विभागाध्यक्ष बनाने से जुड़ा हुआ है. प्राविधिक शिक्षा विभाग के मंत्री आशीष सिंह हैं. उन पर आरोप लगाए जा रहे हैं कि अगर सीधी भर्ती से पद भरे जाते तो पिछड़े और दलित वर्ग को आरक्षण का लाभ मिलता, लेकिन 177 लेक्चरर्स को नियमों के खिलाफ प्रमोशन देने से आरक्षित वर्ग वंचित रह गया, क्योंकि प्रदेश में इस समय प्रमोशन में आरक्षण नहीं मिलता है.
आशीष पटेल के ओएसडी ने क्यों छोडा साथ
खबर यह भी है कि इन्हीं सब आरोपों में आशीष सिंह के विशेष कार्यपालक अधिकारी (ओएसडी) राज बहादुर सिंह ने भी अपना इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने विभागाध्यक्षों की नियुक्ति में अनदेखी को लेकर प्राविधिक शिक्षा मंत्री को एक पत्र भी लिखा था.राज बहादुर सिंह का कार्यकाल अगले साल 28 फरवरी तक था. वो एक मार्च 2023 से ओएसडी के पद पर थे. इसके बाद इस साल जून में उन्हें सुल्तानपुर के किनौरा के राजकीय पॉलीटेक्निक के प्रधाननाचार्य के उनके मूल पद पर वापस भेज दिया गया था.
ऐसा नहीं है कि यह मामला केवल पल्लवी पटेल ने ही उठाया हो, बीजेपी के तीन विधायक इस मामले को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख चुके हैं.इन विधायकों के नाम हैं बलरामपुर सदर के विधायक पल्टू राम, बुलंदशहर के खुर्जा की विधायक मीनाक्षी सिंह और बुलंदशहर के स्याना से विधायक देवेंद्र सिंह लोधी. इन विधायकों का कहना है कि इस तरह की भर्ती करने से उत्तर प्रदेश शासन को हर साल करीब 50 करोड़ रुपये का नुकसान होगा. विधायकों ने इससे शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होने की बात भी कही है. बीजेपी विधायक लोधी ने अपने पत्र के साथ राज बहादुर सिंह के इस्तीफे की प्रति भी लगाई है.
इसके साथ ही इस मामले की शिकायत केंद्र सरकार के शिक्षा मंत्रालय ने अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद से भी की गई है. इसमें कहा गया है कि एक मार्च 2019 के प्रावधानों का उल्लंघन कर अयोग्य शिक्षकों की सीधी भर्ती कर छात्रों को गुणवत्तापूर्ण तकनीकी शिक्षा से वंचित किया जा रहा है. इसे घोर वित्तिय अनियमितता भी बताया गया है (ये सभी चिट्ठियां एनडीटीवी के पास उपलब्ध हैं.)
सोनेलाल पटेल की विरासत
पल्लवी पटेल और अनुप्रिया पटेल, सोनेलाल पटेल की बेटियां हैं. इन दोनों की एक तीसरी बहन है अमन पटेल. सोनेलाल पटेल ने ही 1995 में बहुजन समाज पार्टी से अलग होकर अपना दल का गठन किया था. इस पार्टी की कुर्मी और ओबीसी में आने वाली कुछ छोटी जातियों में अच्छी पैठ है. साल 2009 में सोनेलाल पटेल के निधन के बाद पार्टी की कमान उनकी पत्नी कृष्णा पटेल ने संभाली. हालांकि पार्टी में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई. उसके बाद पार्टी के संचालन की जिम्मेदारी उनकी दूसरे नंबर की बेटी अनुप्रिया पटेल के हाथ में आई.उन्होंने बीजेपी के साथ समझौता किया. अपना दल ने 2014 का चुनाव बीजेपी के साथ मिलकर लड़ा. अनुप्रिया पटेल सांसद चुनी गई थीं. उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में जगह भी मिली.पटेल परिवार में विवाद के बाद इसी के बाद शुरू हुई. पार्टी पर अधिकार जमाने की लड़ाई में पार्टी ही दो टुकड़ों में बंट गई. अनुप्रिया पटेल ने 2016 में अपना दल (सोनेलाल) के नाम से अपनी अलग पार्टी बना ली.वहीं कृष्णा पटेल ने अपना दल (कमेरावादी) नाम से अपनी अलग पार्टी बनाई. पिता के विरासत को लेकर शुरू हुई लड़ाई आज भी जारी है. वहीं अपना दल के कुछ संस्थापक सदस्यों ने भी अपनी अलग पार्टी बनाई है.
अपना दल (एस) पिछले 10 साल से बीजेपी के साथ समझौते में है. वहीं अपना दल (कमेरावादी) अकेले चुनाव लड़ने के साथ अब तक अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम से समझौता कर चुकी है. लेकिन उसे अबतक चुनावी सफलता नहीं मिली है. साल 2022 के चुनाव में अपना दल (कमेरावादी) का सपा से समझौता चुना था. लेकिन पल्लवी पटेल ने कौशांबी जिले की सिराथू सीट से सपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था. इस चुनाव में उन्होंने उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य को हराया था. हालांकि राज्यसभा चुनाव के दौरान पल्लवी का सपा से भी मोहभंग हो गया. हालांकि वो तकनीकी तौर पर अभी भी सपा की विधायक हैं.
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