महाराष्ट्र में चुनाव बाद फिर बनेगा नया गठबंधन? ये दो बयान बढ़ा रहे उद्धव ठाकरे का दर्द

Maharashtra Elections: महाराष्ट्र चुनाव को लेकर चुनावी बिसात बिछ चुकी है. सभी अपने-अपने मोहरे चल रहे हैं, लेकिन ऐसा लग रहा है कि अंतिम चाल चुनाव बाद चली जाएगी. यूं तो भाजपा (BJP) की अगुवाई में एकनाथ शिंदे की शिवसेना और अजित पवार की एनसीपी वाली महायुति और कांग्रेस (Congress) की अगुवाई वाली उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की शिवसेना और शरद पवार की पार्टी महाविकास आघाड़ी आमने-सामने हैं, लेकिन टिकट बंटवारे से लेकर अब तक खटपट समाप्त होने का नाम नहीं ले रही. हर पार्टी ज्यादा से ज्यादा सीट पर चुनाव लड़ने के बाद अब सबसे ज्यादा सीट जीतने में लगी है. हालांकि, रविवार को दो बयान ऐसे आए, जिसने उद्धव ठाकरे के दर्द को बढ़ा दिया है.  

क्या करेंगे उद्धव ठाकरे?

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने राज्य विधानसभा चुनाव में एमवीए को बहुमत मिलने का भरोसा जताते हुए रविवार को कहा कि यह एक पुरानी परंपरा है कि गठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने वाला दल ही मुख्यमंत्री का नाम तय करता है. नवंबर 2010 से सितंबर 2014 के बीच महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहे चव्हाण ने कहा कि मुझे नहीं लगता कि इस बार इसमें कुछ अलग होना चाहिए. इस बार अगर तीनों दल मिलकर फॉर्मूला बदलना चाहते हैं, तो वे ऐसा करने के लिए स्वतंत्र हैं. नेता जो चाहें, कर सकते हैं. चव्हाण ने कहा कि राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (शरदचंद्र पवार) के नेता शरद पवार ने भी कहा है कि गठबंधन सहयोगियों में सबसे ज्यादा सीट जीतने वाली पार्टी को मुख्यमंत्री के नाम पर फैसला करना है.सबसे बड़ी पार्टी मुख्यमंत्री का नाम तय करेगी.

उद्धव ठाकरे की नहीं चल रही?

भाजपा को छोड़कर उद्धव ठाकरे शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने गए थे. वहां भी शरद पवार के कहने पर खुद मुख्यमंत्री बन गए. एकनाथ शिंदे की बगावत के चलते पार्टी टूट गई. सरकार चली गई. उम्मीद थी कि कम से कम गठबंधन के साथी और खासकर शरद पवार साथ देंगे. उन्हें कम से कम मुख्यमंत्री का चेहरा तो जरूर बनवा देंगे पर बात नहीं बनी. आलम ये है कि कांग्रेस तो कांग्रेस शरद पवार ने भी साफ कर दिया है कि जो पार्टी गठबंधन में ज्यादा सीटें जीतेगी, मुख्यमंत्री उसी का होगा. साफ है उद्धव ठाकरे की महाविकास आघाड़ी में नहीं चली. अगर चलती तो ऐसा वो नहीं होने देते. 

2014 और 2019 वाला हाल होगा?

अब चुनाव बाद अगर उनकी सीटें कांग्रेस या शरद पवार की पार्टी से कम आ जाती हैं तो उद्धव ठाकरे क्या करेंगे.क्या वो दबाव बनाएंगे? अगर दबाव के बाद भी कांग्रेस और शरद पवार नहीं माने तो वो क्या करेंगे? भाजपा के पास क्या जाने का उनके पास विकल्प बचा है? अगर गए भी तो क्या भाजपा उन्हें मुख्यमंत्री बनने देगी? कुल मिलाकर कहें कि अगर महाविकास आघाड़ी को बहुमत मिल भी जाता है, तो इसमें कोई दो राय नहीं कि वहां भी 2014 और 2019 में जिस तरीके से भाजपा का हुआ था, वही कांग्रेस और शरद पवार को भी झेलना पड़ेगा. यही कारण है कि कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी उद्धव ठाकरे पर पूरा भरोसा नहीं कर पा रहे हैं. हां, उद्धव ठाकरे को छोड़ना भी उनके लिए नुकसानदायक हो सकता है. क्योंकि अगर उद्धव ठाकरे अलग भी लड़ते तो भी कांग्रेस और शरद पवार की पार्टी का चुनाव जीतना मुश्किल होता. कारण वो वोट तो इन्ही के काटते. लोकसभा चुनाव में ये साफ हो गया है कि उद्धव ठाकरे की पार्टी उन्हीं सीटों पर अच्छा कर पाई, जिन सीटों पर मुस्लिम वोटरों की संख्या अच्छी थी. ऐसे में इन तीनों दलों में आगे बढ़ने की होड़ है, जो उन्हें एक-दूसरे के खिलाफ भीतरघात करने के लिए प्रेरित कर सकती है.

भाजपा उद्धव से पूछ रही तीखे सवाल

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को कहा कि शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे उस कांग्रेस का साथ दे रहे हैं, जिसके नेताओं ने बालासाहेब ठाकरे और हिंदुत्व की विचारधारा वाले विचारक वीर सावरकर का अपमान किया है. उन्होंने कहा, ‘‘मैं उद्धव ठाकरे से पूछना चाहता हूं कि क्या वह कांग्रेस नेता राहुल गांधी से वीर सावरकर के लिए दो अच्छे शब्द कहने का अनुरोध कर सकते हैं.” शाह ने कहा, ‘‘क्या कांग्रेस का कोई नेता बालासाहेब ठाकरे के सम्मान में कुछ शब्द कह सकता है?” शाह ने कहा, ‘‘क्या महाराष्ट्र के लोग अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए निर्धारित आरक्षण का अधिकार मुसलमानों को देने के पक्ष में हैं?”इन बयानों से उद्धव ठाकरे को सबसे ज्यादा तकलीफ इसलिए होनी तय है कि उनके मूल वोटर इन्हीं बातों पर अब तक उन्हें वोट देते आए हैं. बालासाहेब ठाकरे शुरू से इन्हीं मुद्दों को लेकर आगे बढ़ते रहे और अब उद्धव ठाकरे इन्हीं मुद्दों पर चुप रहने का मजबूर हैं.

उद्धव ठाकरे के लिए मौका?

अमित शाह ने आज ऐलान किया कि अभी एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री हैं. चुनाव के बाद गठबंधन के तीनों साझेदार मुख्यमंत्री पद पर फैसला लेंगे.उन्होंने कहा कि शिवसेना और राकांपा दो धड़ों में इसलिए बंटी, क्योंकि उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे के बजाय अपने बेटे को तरजीह दी और शरद पवार ने अजित पवार के बजाय अपनी बेटी को तरजीह दी.ये दल अपने परिवार के सदस्यों को प्राथमिकता देते हैं और पार्टी बंट जाती है. वे बिना किसी बात के भाजपा को जिम्मेदार ठहराते हैं.भाजपा परिवार आधारित राजनीति के खिलाफ है. साफ है कि अमित शाह चुनाव बाद तक अपने पत्ते नहीं खोलना चाहते. ये बयान उद्धव ठाकरे को भाजपा के संपर्क में रहने को मजबूर कर देगा. कारण ये है कि अगर भाजपा को छोड़कर सीएम बनने के लिए उद्धव ठाकरे कांग्रेस के साथ जा सकते हैं तो फिर भाजपा के साथ आने के लिए तो उनके पास बहुत से आधार हो जाएंगे. हिंदुत्व, सावरकर और न जाने क्या-क्या…2014 के बाद महाराष्ट्र की राजनीति में जो कुछ हुआ है, उसमें कुछ भी मुमकिन लगता है.
 



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