एनडीटीवी को आज शाम को दिए गए एक विशेष इंटरव्यू में अंतरराष्ट्रीय अदालतों में कई बार भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हरीश साल्वे ने कहा कि यह फैसला अदाणी समूह के लिए “सिर्फ एक पुष्टि से कहीं अधिक” है.
हरीश साल्वे ने यह बताते हुए कि कैसे 2014 के बाद के वर्षों में घोटालों के आरोपों के बाद देश में अविश्वास का माहौल था, कहा कि, “यह कानून के शासन और शक्तियों के पृथक्करण के महत्व को बहाल करता है.”
उन्होंने कहा कि, “कानून का शासन आहत हो गया. जब अदालतों ने जांच एजेंसियों और नियामक एजेंसियों के साथ हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया तो शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ.” उन्होंने कहा कि संवैधानिक शक्तियों की बहाली में नौ साल लग गए.
आज अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि अरबपति जॉर्ज सोरोस और अन्य द्वारा फंडेड संगठन OCCRP के आरोप हिंडनबर्ग मामले में सेबी (SEBI) की जांच पर संदेह करने का आधार नहीं हो सकते.
सेबी ने अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों से जुड़े 24 में से 22 मामलों की जांच की है.
मामले को स्थानांतरित करने की याचिकाकर्ताओं की अपील पर प्रतिक्रिया देते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि जांच स्थानांतरित करने की शक्ति का प्रयोग “असाधारण परिस्थितियों में किया जाना चाहिए.”
अदालत ने कहा, ”इस तरह की शक्तियों का प्रयोग ठोस औचित्य के अभाव में नहीं किया जा सकता है.” अदालत ने टिप्पणी की कि इस तरह के हस्तांतरण को उचित ठहराने के लिए कोई सबूत नहीं है.
बाकी दो मामलों में जांच पूरी करने के लिए सेबी को तीन महीने का समय दिया गया है.
हरीश साल्वे ने कहा, “कानून का शासन सर्वोच्च है” और इसके तहत नियामक एजेंसियों द्वारा अप्रमाणित आरोपों को केवल इनपुट के रूप में माना जा सकता है, सबूत के रूप में नहीं.”
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