पाकिस्तान में ‘मिनी काबुल’
पाकिस्तान में हाजी मुबारक शिनवारी अकेले ऐसे व्यक्ति नहीं हैं. कराची शहर के उत्तर में बमुश्किल कुछ किलोमीटर की दूरी पर अल-आसिफ स्क्वायर है, जहां अफगानों की अच्छी खासी आबादी है. पास ही अफगान मजदूरों और छोटे कारोबारियों की दो बड़ी बस्तियां हैं. अल-आसिफ स्क्वायर और इन बस्तियों का दौरा करने से यह आभास होता है कि आप ‘मिनी काबुल’ में हैं, जहां अफगानी लोग अपनी दुकानों और विभिन्न रेस्तरां में अफगानी व्यंजन पेश करते हैं.
पाक में अधिकांश अफगान शरणार्थी निम्न मध्यम वर्ग के
1978 में सोवियत आक्रमण के बाद शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान आने वाले अफगानों समेत हजारों अफगानों ने दशकों से पाकिस्तान के सभी प्रमुख शहरों में व्यापार और काम किया है, जिसमें सिंध प्रांत में कराची और बलूचिस्तान प्रांत में क्वेटा प्रमुख हैं. कराची में अफगान वाणिज्य दूतावास के कानूनी सलाहकार सादिकउल्ला काकड़ ने बताया कि पाकिस्तान में अधिकांश अफगान शरणार्थी निम्न मध्यम वर्ग के हैं. उन्होंने कहा, “लिहाजा, उनके पास कोई योग्यता या खास शिक्षा भी नहीं है.”
स्थिति गंभीर…चेहरों पर अनिश्चितता
पाकिस्तान सरकार ने वैध दस्तावेजों के बिना रह रहे अफगानों को वापस भेजने की समयसीमा 31 अक्टूबर तय की थी, जिसके खत्म होने के दो सप्ताह बाद हजारों लोग विस्थापित हो चुके हैं और अब, यहां तक कि वैध कागजात वाले लोगों को भी 31 दिसंबर के बाद वापस भेजने की योजना बनाई गई है. स्थिति गंभीर है और उनके चेहरों पर अनिश्चितता साफ दिखाई देती है.
अफगानिस्तानियों को क्यों किया जा रहा पाकिस्तान से बाहर?
समय सीमा समाप्त होने के बाद से 1,65,000 से अधिक अफगान पाकिस्तान से जा चुके हैं. कारण? पाकिस्तान सरकार का कहना है कि सुरक्षा कारणों से उसने यह फैसला लिया है. सरकार का आरोप है कि इनमें से कई अफगान आपराधिक और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल हैं.
सिर्फ 50,000 रुपये नकदी साथ ले जाने की इजाजत
इस फैसले से मुबारक जैसे सैकड़ों अफगानों को नुकसान हुआ है. कई वर्षों से पाकिस्तान में रहने वाले हजारों अफगानों को अपने कारोबार, संपत्ति छोड़कर देश से जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है. मुबारक ने कहा, “हमारे लिए यह एक बुरी स्थिति है.” पाकिस्तान सरकार ने (पाकिस्तान से) अफगानिस्तान में नकदी और संपत्ति के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया है, ऐसे में मुबारक समझ नहीं पा रहे हैं कि अफगानिस्तान जाने पर वह अपनी मेहनत से अर्जित संपत्ति को कैसे बचा सकते और स्थानांतरित कर सकते है. मुबारक ने कहा कि शरणार्थियों को प्रति व्यक्ति केवल 50,000 रुपये नकदी अपने साथ ले जाने की अनुमति है.
अफगान के मंत्री ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री से की बात
अधिकांश अफगान जो अपने वतन लौट गए हैं या जाने की तैयार कर रहे हैं उन्हें दशकों में स्थापित हुए अपने कारोबार और घरों को खोने की कठोर वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है. मुद्दा इतना गंभीर हो गया है कि अफगानिस्तान के कार्यवाहक वाणिज्य मंत्री हाजी नूरुद्दीन अजीजी ने इस पर चर्चा करने के लिए पिछले सप्ताह इस्लामाबाद में पाकिस्तान के विदेश मंत्री जलील अब्बास जिलानी से मुलाकात की.
वैसी ही स्थिति है, जैसी हमने 1947 में विभाजन…
क्वेटा में किराने की दो दुकानों के मालिक रहमत खानजादा ने फोन पर कहा कि उन्हें डर है कि उनकी सारी बचत अब बर्बाद हो रही है. उन्होंने कहा, “यह वैसी ही स्थिति है, जैसी हमने 1947 में विभाजन के वक्त सुनी थी. बड़े शहरों में कई लोगों ने उन हिंदुओं, पारसियों और यहां तक कि मुसलमानों की संपत्तियों व कारोबार पर कब्जा कर लिया था, जिन्होंने भारत जाने का फैसला किया था।”
पाकिस्तान ने कहा है कि उसने दशकों से लगभग 17 लाख गैर-दस्तावेज अफगान शरणार्थियों को पनाह दी है, लेकिन अब उनका समय समाप्त हो गया है और उन्हें अपने वतन लौटना होगा. अफगान वाणिज्य दूतावास के काकड़ ने कहा कि विशेष रूप से गैर-दस्तावेजों के बिना रह रह रहे शरणार्थी असहाय हैं, जबकि दस्तावेज वाले शरणार्थियों के लिए भी आने वाला वक्त आसान नहीं होने वाला है.
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