जनहित याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा, “चूंकि मौजूदा रिट (जनहित याचिका) में शामिल मुद्दे पहले से ही (लंबित मुकदमों में) इस अदालत का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, हम इस रिट पर विचार करने के इच्छुक नहीं हैं और इस प्रकार से इसे खारिज किया जाता है.”
इससे पूर्व, राज्य सरकार की ओर से पेश हुए मुख्य स्थायी अधिवक्ता कुणाल रवि सिंह ने इस रिट याचिका का यह कहते हुए विरोध किया था कि यद्यपि इस याचिका को जनहित याचिका के तौर पर बताया गया है, यह जनहित में नहीं है, बल्कि यह एक निजी कारण का समर्थन करता है क्योंकि याचिकाकर्ता भगवान श्रीकृष्ण की प्रबल भक्त होने का दावा करती हैं.
उन्होंने दलील दी, “स्थानांतरण आवेदन (दीवानी) संख्या 88, 2023 (भगवान श्रीकृष्ण विराजमान एवं सात अन्य बनाम उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड एवं तीन अन्य) में 26 मई, 2023 को पारित आदेश के तहत सिविल न्यायाधीश, सीनियर डिवीजन, मथुरा के समक्ष लंबित 10 मामले इस अदालत को स्थानांतरित किए गए हैं और वे लंबित हैं. इन मुकदमों में भी वही मुद्दे उठाए गए हैं जो इस रिट (जनहित याचिका) में उठाए गए हैं. इसलिए इसे सिरे से खारिज किए जाने का अनुरोध है.”
संबंधित पक्षों को सुनने के बाद अदालत ने कहा, “हमने भी 26 मई, 2023 के आदेश पर गौर किया है जो इन मुकदमों की प्रकृति पर कुछ प्रकाश डालता है. वहीं दूसरी ओर, इस याचिका में यह कहा गया है कि याचिकाकर्ता की नानी ने उन्हें मथुरा और बृज मंडल 84 कोस के अध्यात्मिक महत्व के बारे में बताया और साथ ही यह भी बताया कि कैसे औरंगजेब द्वारा भगवान कृष्ण के जन्मस्थल पर बने मंदिर को ध्वस्त करने के बाद शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण किया गया.”
अदालत ने कहा, “इस याचिका में यह भी कहा गया है कि शाही ईदगाह मस्जिद की देखरेख करने वाले ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट द्वारा अतिक्रमण किए जाने के कारण श्री कृष्ण जन्मस्थान की भूमि 13.37 एकड़ से काफी घट गई है.”
अदालत ने कहा, “याचिका में यह भी बताया गया है कि ईदगाह मस्जिद ट्रस्ट की प्रबंधन समिति ने 12 अक्टूबर, 1968 को सोसाइटी श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ के साथ एक अवैध समझौता किया और दोनों ने संपत्ति हड़पने के उद्देश्य से अदालत, देवताओं और भक्तों के साथ धोखाधड़ी की.”
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