उच्चतम न्यायालय में दायर अपनी याचिका में, जांच एजेंसी ने दावा किया है कि देशमुख को जमानत देते समय उच्च न्यायालय ने ‘‘गंभीर त्रुटि” की है. इसमें कहा गया है, ‘‘उच्च न्यायालय इस बात पर गौर करने में विफल रहा कि आर्थिक अपराधों को अलग श्रेणी के अपराधों के रूप में माना जाना आवश्यक है और ऐसे अपराधों में एक नियमित मामले के रूप में जमानत प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है.”
सीबीआई ने दावा किया कि उच्च न्यायालय इस बात को समझने में विफल रहा कि एजेंसी द्वारा दायर आरोप पत्र केवल आरोपी से सरकारी गवाह बने सचिन वाजे के बयान पर निर्भर नहीं है, बल्कि अन्य भौतिक साक्ष्यों पर भी आधारित है.
याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने यह समझने में ‘त्रुटि’ की है कि वाजे की गवाही के रूप में सबूत देशमुख की हिरासत को बढ़ाने के लिए आधार नहीं हो सकते.
सीबीआई ने अपनी याचिका में कहा कि उच्च न्यायालय यह समझने में भी विफल रहा कि महाराष्ट्र के गृह मंत्री का पद छोड़ने के बावजूद देशमुख का राज्य में ‘‘काफी दबदबा” है.
सीबीआई की एक विशेष अदालत द्वारा पिछले महीने उनकी जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद देशमुख ने उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. उन्होंने चिकित्सा आधार पर जमानत मांगी.
धनशोधन मामले में प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद राकांपा के नेता पिछले साल नवंबर से जेल में हैं. इस साल अप्रैल में उन्हें सीबीआई ने भ्रष्टाचार के मामले में गिरफ्तार किया था। उच्च न्यायालय ने उन्हें पिछले महीने ईडी मामले में जमानत दी थी.
हालांकि, भ्रष्टाचार के मामले में देशमुख की जमानत याचिका को सीबीआई की विशेष अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया सबूत हैं.
आईपीएस अधिकारी परम बीर सिंह ने मार्च 2021 में आरोप लगाया था कि तत्कालीन गृह मंत्री देशमुख ने पुलिस अधिकारियों को मुंबई में रेस्तरां और बार से प्रति माह 100 करोड़ रुपये एकत्र करने का लक्ष्य दिया था.
उच्च न्यायालय ने अप्रैल 2021 में सीबीआई को देशमुख के खिलाफ प्रारंभिक जांच करने का निर्देश दिया. सीबीआई ने बाद में कथित भ्रष्टाचार और आधिकारिक शक्ति के दुरुपयोग के लिए देशमुख और उनके सहयोगियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की.
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