नई दिल्ली:
डायलॉग एंड डेवलपमेंट कमीशन ऑफ दिल्ली (DDCD) के उपाध्यक्ष जस्मीन शाह को पद की जिम्मेदारियां निभाने से रोकने वाले आदेश को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा रद्द करना ‘निष्प्रभावी और असंवैधानिक’ है क्योंकि अंतिम निर्णय के लिए यह मामला नवंबर में ही राष्ट्रपति को भेज दिया गया था. उपराज्यपाल सचिवालय के सूत्रों ने शनिवार को यह जानकारी दी है.
दिल्ली सरकार ने हालांकि मामला राष्ट्रपति को भेजने के उप राज्यपाल के फैसले को ‘अवैध’ बताया है. दिल्ली सरकार ने कहा, “राष्ट्रपति को कोई भी मामला भेजने से पहले उन्हें मामले को मुख्यमंत्री और कैबिनेट को भेजना चाहिए. उन्होंने ऐसा नहीं किया है. यह (राष्ट्रपति के पास मामला भेजना) उच्चतम न्यायालय के फैसले के खिलाफ भी है.”
उपराज्यपाल वी. के. सक्सेना ने पिछले महीने केजरीवाल को डीडीसीडी के उपाध्यक्ष पद से शाह को हटाने का निर्देश दिया था. उन्होंने यह कदम शाह द्वारा ‘राजनीतिक उद्देश्य’ के लिए पद का दुरुपयोग करने के आरोपों की वजह से उठाया था.
मुख्यमंत्री केजरीवाल ने बृहस्पतिवार (आठ दिसंबर) को योजना विभाग को निर्देश दिया था कि वह शाह को उपाध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों को निभाने से रोकने के आदेश को वापस ले.सूत्रों ने हालांकि, दावा किया कि सक्सेना ने अलग-अलग राय होने की वजह से 30 नवंबर को ही इस मामले को अंतिम फैसले के लिए राष्ट्रपति को भेज दिया था और साथ ही ‘लिखित में इसकी औपचारिक जानकारी मुख्यमंत्री को दी थी.’
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239 ए के तहत अगर मुख्यमंत्री के नेतृत्व वाले मंत्रिमंडल और उपराज्यपाल के बीच किसी मुद्दे पर अलग-अलग राय हो तो अंतिम फैसला राष्ट्रपति लेता है, जिसे मानना अनिवार्य होता है. सूत्रों ने बताया कि जबतक राष्ट्रपति फैसला नहीं लेते तब तक ऐसे मामलों में कार्रवाई के लिए उपराज्यपाल सक्षम प्राधिकार हैं.
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