मोरबी. गुजरात के मोरबी में ब्रिज हादसे (Gujarat Morbi Accident) में अब तक 135 लोगों की मौत हो चुकी है, जिनमें 47 बच्चे शामिल हैं. बीजेपी के नेतृत्व वाली गुजरात सरकार पर मोरबी पुल हादसे में लीपापोती के गंभीर आरोप लग रहे हैं. औपनिवेशिक युग के पुल के रेनोवेशन के लिए मोरबी नगर निगम ने घड़ी और बल्ब बनाने वाली प्राइवेट कंपनी ओरेवा (Oreva) को कॉन्ट्रैक्ट दिया था. इस मामले में अब तक कंपनी से जुड़े छोटे स्तर के 9 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. वहीं, कंपनी के मालिक और प्रमुख अधिकारी मोरबी से गायब हो गए हैं. कंपनी के विशाल फार्महाउस में ताला जड़ा है. यहां तक कि एक सुरक्षा गार्ड भी नहीं दिख रहा है.
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स्थानीय लोगों ने एनडीटीवी को बताया कि ओरेवा के प्रबंध निदेशक जयसुखभाई पटेल को 30 अक्टूबर के बाद से नहीं देखा गया है. उन्होंने 24 अक्टूबर को ब्रिज खुलने के एक दिन पहले सार्वजनिक रूप से दावा किया था कि पुनर्निर्मित पुल कम से कम 8 से 10 साल तक टिकेगा. जबकि ये पुल खुलने के महज 4 दिन में ही ढह गया. जयसुखभाई पटेल ने मोरबी नगर निगम और अजंता मैन्युफैक्चरिंग लिमिटेड-ओरेवा की मूल कंपनी के साथ समझौते पर साइन किए थे. अजंता को घड़ी बनाने वाली कंपनी के रूप में जाना जाता है.
भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की विभिन्न धाराओं के तहत रविवार को ओरेवा के मध्य स्तर के अधिकारियों, टिकट विक्रेताओं और सुरक्षाकर्मियों समेत 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया. विपक्षी दलों और यहां तक कि स्थानीय लोगों ने राज्य सरकार पर शीर्ष प्रबंधन को बचाते हुए निचले स्तर के लोगों को बलि का बकरा बनाने की कोशिश करने का आरोप लगाया है. जिनकी मांग है कि दुर्घटना के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए.
इस बीच मोरबी त्रासदी में मारे गए लोगों के लिए 2 नवंबर को राज्यव्यापी शोक मनाया जाएगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में गांधीनगर राजभवन में हुई उच्च स्तरीय बैठक में यह फैसला लिया गया. वहीं, राज्य सरकार ने तय किया है कि हादसे में मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम नहीं किया जाएगा.
हादसा रविवार शाम 6.30 बजे तब हुआ, जब 765 फीट लंबा और महज 4.5 फीट चौड़ा केबल सस्पेंशन ब्रिज टूट गया. इसकी क्षमता महज 100 लोगों की थी. यहां 500 से ज्यादा लोग जमा हो गए थे. चश्मदीदों ने तो बताया कि वहां पर हजार से ज्यादा लोग मौजूद थे. 26 अक्टूबर को खोले जाने के 5 दिन बाद ही यह हादसा हुआ.
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